Logo

छठ पूजा में कोबला

छठ पूजा में कोबला

कबूला या कोबला में अर्घ्य से पहले जल में क्यों खड़े होते हैं व्रती? 


छठ पूजा विशेषकर भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसमें सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। इस पूजा में कबूला या कोबला का विशेष महत्व है, जिसके अंतर्गत व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले जल में खड़े रहते हैं। माना जाता है कि सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य देवता को अर्घ्य देना विशेष फलदायी होता है। इस पूजा में व्रती का जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना एक कठिन साधना है। आइए, जानते हैं इसके पीछे के मुख्य कारण। 


क्या है कोबला की परंपरा? 


छठ पूजा की कबूला या कोबला परंपरा में व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले लगभग दो घंटे तक कमर तक पानी में खड़े रहते हैं। इसे केवल धार्मिक कृत्य नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक साधना भी माना जाता है। इसमें व्रती अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हुए पूरी श्रद्धा से सूर्य देव की उपासना करते हैं। माना जाता है कि इससे कई तरह के लाभ भी प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैं। 


  1. धार्मिक विश्वास और आस्था:- छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। जो ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि के प्रतीक हैं। पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने से माना जाता है कि व्रती सूर्यदेव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से व्रती यह विश्वास रखते हैं कि सूर्य देव उन्हें अपनी ऊर्जा और शक्ति प्रदान करेंगे जिससे उनके जीवन में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहेगी।
  2. धैर्य और संयम का प्रतीक:- पानी में लंबे समय तक खड़े रहना शारीरिक और मानसिक धैर्य की परीक्षा है। यह व्रती की भक्ति को दर्शाता है और उनके आत्म-नियंत्रण का भी प्रतीक है। इस कठिन साधना के माध्यम से व्रती अपनी आस्था, संयम और समर्पण का प्रदर्शन करते हैं। जो उनकी श्रद्धा को और अधिक प्रबल बनाता है।
  3. शारीरिक शुद्धि और ऊर्जा का संचार:- जल में खड़े रहने को एक प्रकार के जल-उपचार के रूप में भी देखा जाता है। माना जाता है कि पानी में लंबे समय तक खड़े रहने से शरीर की ऊर्जा का संतुलन होता है और यह शारीरिक शुद्धि में भी सहायक होता है। 
  4. प्राकृतिक तत्वों के प्रति कृतज्ञता:- छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू प्रकृति के प्रति कृतज्ञता है। इस पूजा में सूर्य, जल, वायु और पृथ्वी के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। जल में खड़े होकर व्रती अपने शरीर और आत्मा को प्रकृति के साथ जोड़ते हैं। इससे वे पृथ्वी और जल से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। जो उनके मन और आत्मा को शुद्ध करता है।


डूबते सूर्य को अर्घ्य से लाभ


कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर व्रती सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि सूर्यास्त के समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं। इस समय उन्हें अर्घ्य देने से जीवन में चल रही परेशानियों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।  कबूला या कोबला के माध्यम से व्रती सूर्य देव की आराधना करते हैं और जल, पृथ्वी और संपूर्ण प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

........................................................................................................

... Read More

HomeBook PoojaBook PoojaChadhavaChadhavaKundliKundliPanchangPanchang