ज्वारों का महत्व और पूजा विधि

नवरात्रि में इस लिए बोए जाते हैं गेंहू के ज्वारे, जानिए किस रंग के ज्वारों का क्या है संकेत, पूजा विधि भी जानें…



सनातम धर्म में मां दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि का विशेष महत्व है। भक्त वत्सल की नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला में आपने मैय्या की आराधना के बारे में विस्तार से पढ़ा होगा। इसी क्रम में आपने घटस्थापना के बारे में भी जाना होगा। घटस्थापना के विषय में जानकारी प्राप्त करते हुए जवारों या ज्वारों को बोने का विधान भी बताया गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवरात्रि में आखिर ज्वारे क्यों बोएं जातें हैं और मैय्या के पूजन में इनका क्या महत्व है?

यदि नहीं तो भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताते हैं नवरात्रि में ज्वारों के बोएं जाने के पीछे का विशेष कारण क्या है।


ज्वारे बोने का विशेष महत्व है


नवरात्रि के नौ दिनों में भक्त अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार देवी मां की पूजा करते हैं। नवरात्रि में ज्वारे बोने का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार प्रकृति की शुरुआत में जो सबसे पहली फसल बोई गई थी वह जौ थी, इसलिए इसे पूर्ण फसल कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की तब वनस्पतियों में सबसे पहले जौ ही बनाए थे। इसीलिए नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के समय घट या कलश के सामने एक मिट्टी के पात्र में जौ या गेहूं को बोया जाता है। जिनका नवरात्रि के समापन पर विसर्जन किया जाता है।



नवरात्रि के दिनों में ज्वारों से मिलते हैं यह संकेत!


नवरात्रि के ज्वारे बोने के बाद उनका विकास और वृद्धि  कुछ शुभ और अशुभ संकेत देती है। जैसे -



  • यदि नवरात्रि में जौ जल्द ही उगने लगें और हरे-भरे हो जाएं तो यह एक शुभ संकेत है। ऐसी मान्यता है कि यह हर बाधा के दूर होने का इशारा है। यह घर के सदस्यों के उत्तम स्वास्थ्य का भी संकेत है। तेजी से जौ बढ़ने का एक अर्थ घर में सुख-समृद्धि के आगमन से भी है।
  • जौ का सफेद और हरे रंग में तेजी से बढ़ना एक शुभ संकेत है। इसका अर्थ माता द्वारा हमारी पूजा स्वीकार करना बताया गया है।
  • जौ के पीले रंग का संबंध खुशियों के आगमन से है।
  • वही यदि नवरात्रों में बोई गई जौ ठीक से नहीं उग रही हैं तो यह एक अशुभ संकेत है।
  • यदि जौ काले रंग में टेढ़ी-मेढ़ी हैं तो इसे भी एक अशुभ संकेत माना गया है।
  • अगर जौ सूखी और पीली होकर झड़ रहीं हैं तो यह भविष्य में खतरे का संकेत है।
  •  जौ के ऊपर का आधा हिस्‍सा हरा हो और नीचे से आधा हिस्‍सा पीला हो तो इसका आशय यह है कि आने वाले साल में आधा समय अच्‍छा होगा और आधा समय ठीक नहीं होगा।


यह भी मान्यता है 


  • नवरात्रि के ज्वारे, जयंती और अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप माने जाते है। 
  • जौ या गेहूं अन्न हैं और हिन्दू शास्त्रों में अन्न को ब्रह्मा का अंश कहा गया है। इसीलिए भी नवरात्रि में इनकी पूजा का विधान है।
  • जौ बोने और उनके फलने-फूलने से वर्षा, फसल और संसार के भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है। अगर जौ का आकार और लंबाई सही नहीं है तो कम वर्षा होगी और फसल भी कम होगी। 
  • जौ जितनी बढ़ती है उतनी ही माता रानी की कृपा हम पर बरसती है। 
  • जौ के अंकुर 2 से 3 दिन में आ जाते हैं तो यह बेहद शुभ है। यदि जौ नवरात्रि में कई दिन तक जौ न उगे तो यह अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि बोने में गलती से भी ऐसा हो सकता है।



ऐसे बोएं माता के ज्वारे 


  • सबसे पहले खेत की साफ और काली मिट्टी छान लें।
  • उसमें आधे से थोड़ा कम भाग सूखा गोबर मिला लें। यह गोबर गाय का हो तो अति उत्तम।
  • इसके बाद दोनों के मिश्रण को उस पात्र में डालें जिसमें ज्वारे बोना है।
  • फिर इस मिट्टी पर जौं या गेहूं के दाने डालें।
  • अब दानों पर फिर हल्की हल्की मिट्टी डालें ताकि सभी दाने ढंक जाए। ध्यान रखें कि मिट्टी की परत बहुत ज्यादा मोटी न हो सके।
  • इसके बाद हल्के हल्के छिड़काव से पानी दें।
  • शुरुआत में दो तीन दिन  रोज पानी न दें। एक दिन छोड़कर नमी की मात्रा के हिसाब से पानी दें।
  • तीसरे और चौथे दिन में सभी दाने अंकुरित हो जाएंगे।
  • फिर नियमित पानी देने से ज्वारे हरे भरे और स्वस्थ्य रहेंगे।


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