कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से प्रयागराज में होने जा रही है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचने वाले हैं। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण कल्पवास होगा। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो माघ मास में किया जाता है। यह व्रत पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघी पूर्णिमा के स्नान पर्व तक चलता है। पौष पूर्णमा के दिन श्रद्धालु संगम में पहला स्नान कर अपने संकल्प की शुरुआत करते हैं और रेती पर बने तंबुओं में रहते हैं। इसके साथ वे नियमित दिनचर्या का पालन करते हैं। व्रत के दौरान व्यक्ति एक माह तक नियमपूर्वक संगम तट पर रहकर साधना, भक्ति और तपस्या करता है। आप अभी तक कल्पवास के बारे में जान ही गए होंगे। चलिए अब आपको बताते हैं कि कल्पवास करने की सही प्रक्रिया क्या है और ये कितने दिनों तक किया जा सकता है।
कल्पवास की अवधि व्यक्ति की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। धर्म-ग्रंथों के मुताबिक, कल्पवास की अवधि एक रात, तीन रात, तीन महीना, छह महीना, छह साल, 12 साल या जीवन भर भी हो सकती है। कई साधु-संत जीवनभर इस प्रक्रिया का पालन करते हैं। कल्पवास एक तरह का व्रत है। इसमें व्यक्ति एक निश्चित अवधि के लिए विशेष नियमों का पालन करते हुए साधना करता है। मान्यता है कि कल्पवास करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मेरे भोले की सवारी आज आयी,
मेरे शंकर की सवारी आज आयी,
वक्रतुण्ड महाकाय,
सूर्यकोटि समप्रभ:,
मेरे गणनायक तुम आ जाओ,
मैं तो कबसे बाट निहार रही,
विवाह पंचमी का पर्व बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माता सीता और प्रभु श्री राम का विवाह हुआ था। विवाह पंचमी का पर्व सभी तिथियों में शुभ माना गया है। इस तिथि आदर्श दांपत्य जीवन का उदाहरण हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति के विवाह में कोई परेशानी आ रही है, तो इस दिन विधिवत रूप से राम जी और जानकी माता की पूजा की जाती है।