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नवरात्रि के अंतिम दिन पुण्य लाभ अर्जित करने हेतु कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। नौ दिनों तक व्रत रखने वाले सभी भक्त कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। इनके अलावा जो व्रत नहीं भी रखते हैं कन्याओं को देवी मां का स्वरूप मान कर कन्या भोजन का आयोजन कर कन्याओं को भोज करवाते हैं। इस दिन कन्याओं को भोजन कराने से माता के आशीर्वाद से घर में सुख, शांति एवं सम्पन्नता आती है। वहीं नवरात्रि में कन्या पूजन करने से सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार नवरात्री के अंतिम दिन कौमारी पूजन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र व्रत अधूरा रह जाता है। कन्या पूजन के लिए सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को श्रेष्ठ बताया गया है।
नियम के अनुसार कन्या भोज के दौरान नौ कन्याओं को भोजन करवाना चाहिए, लेकिन यदि इससे ज्यादा भी हो तो हर्ज नहीं है। कन्याएं 10 वर्ष से कम आयु की हो तो भोजन करवाने वाले को कभी भी धन की कमी नहीं होती। आमतौर पर नवमी को कन्याओं को भोजन करवाने और पूजन करने का विधान है जो अत्यंत शुभकारी माना गया है।
लेकिन सुविधानुसार अष्टमी को भी कन्या पूजन किया जा सकता है। नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या भोजन का विधान ग्रंथों में वर्णित है। शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि 2 से 10 साल तक उम्र की नौ कन्याओं को नवरात्रि की अष्टमी नवमी को भोजन कराने से हर दुख का निदान होता है। लेकिन याद रखें कन्याओं को भोजन करवाने से पहले देवी को नैवेद्य लगाएं और देवी को भेंट करने चढ़ाएं।
- अगर शादी नहीं हो रही है तो पांच साल की कन्याओं को भोजन कराएं और श्रृंगार का सामान भेंट करें।
- चार साल की कन्याओं को भोजन और विशेष तौर पर खीर खिलाने से पैसों की कमी दूर होती है। इसके साथ ही पीले कपड़े और दक्षिणा भेंट करें।
- शत्रु बाधा और काम की रुकावटें दूर करने के लिए नौ साल की तीन कन्याओं को भोजन सामग्री और कपड़ें भेंट करें।
- दस साल की कन्याओं को मिठाई व भोजन खिलाने से पारिवारिक क्लेश दूर होता है।
- छह साल की कन्या को छाता और कपड़े का भेंट करने से रोजगार संबंधी बांधा दूर होती है।
- वहीं पांच से 10 साल की कन्याओं को भोजन, दूध, फल या फलों का रस भेंट करने से जीवन की सभी समस्याओं का निदान होता है।
वैसे तो मां दुर्गा के निमित्त कन्या भोजन में हलवा, चना, खीर और पूरी बनाया जाता है लेकिन अपने सामर्थ्य अनुसार सच्ची श्रद्धा से किसी भी तरह का सात्विक और शुद्ध भोजन बना सकते हैं। यदि सामर्थ्य है तो दूध और दूध से बनी सफेद रंग की मिठाइयां जरूर रखें जैसे खीर या बर्फी।
- कन्या पूजन के दिन घर आईं कन्याओं का मन से आदर सम्मान करें। कन्याएं देवी स्वरूपा हैं और उनके पूजन से मां प्रसन्न होती हैं।
- सबसे पहले स्वच्छ जल से उनके पैरों को धोए। इससे हमारे पापों का नाश होते या धूल जाते हैं। कन्याओं के माथे पर कुमकुम का टीका लगाएं और कलावा बांधें।
- कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद ग्रहण करें। कन्याओं को आसन पर बैठाए। हो सके तो सभी कन्याओं को लाल आसन पर बैठाएं।
- कोशिश करें कि घर की उत्तर दिशा में कन्याओं को बैठाएं और उनका मुख पूर्व की तरफ हो या पूर्व में बैठाएं और उनका मुख उत्तर दिशा में रखें।
- कन्याओं को भोजन कराने से पहले भोजन का पहला हिस्सा नैवेद्य के रूप में देवी मां को अर्पित करें।
- फिर सारी कन्याओं को प्रेम से भोजन करवाएं। कन्याओं को खीर, पूड़ी, हलवा, काला चना आदि का भोजन कराएं।
- भोजन में खीर जरूर बनाएं। भोग में सफेद बर्फी या दुध की बनी मिठाईयां हो तो अति उत्तम।
- चीनी, दही, शहद, घी और गंगाजल मिलाकर मधुपरक बनाएं और इसका सेवन भी कन्याओं को कराएं। उन्हें एक मीठा पान खिलाएं।
- भोजन के पश्चात् उन्हें यथा शक्ति भेंट दे ।
- कन्याओं को लाल चंदन का टीका लगाएं।
- कुंवारी कन्याओं को हरे या लाल रंग की चूड़ियां दान भेंट करें।
- स्कंदमाता के स्वरूप में सुहागन महिला को भोजन के पश्चात सिंगार का सामान भेंट दें।
- सभी को लाल चुनरी और श्रीफल जरूर दें। श्रीफल कन्याओं को देने से धन में वृद्धि होती है।
हम नवरात्रि में 9 देवियों की पूजा की जाती है। इनमें 8 देवियां कुंवारी हैं और 5वीं देवी यानी स्कंद माता देवी का विवाहिता स्वरूप हैं जो पुत्रवती स्त्री का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। नौ देवियों में 5वीं स्कंदमाता को आपने जब भी देखा होगा उनकी बाई जांघ पर स्कंद यानी भगवान कार्तिकेय पुत्र रूप में बैठे होते हैं। स्कंदमाता को भगवान शिव की पत्नी और कार्तिकेय यानी स्कंद जी की माता के रूप में पूजा जाता हैं। इसलिए जब भी कंजिका यानी कन्याओं का पूजन करते हैं, तब 8 कुंवारी और एक विवाहित सुहागन महिला की पूजा करनी चाहिए।
आपने अपने बुजुर्गों से सुना होगा कि कंजिका यानी कन्या पूजन में एक लड़के को भी भोजन करवाना चाहिए जिसे भैरव स्वरूप माना जाता है। लेकिन इसे भैरव नहीं लांगुर कहा जाना चाहिए। जो भगवान स्कंद या कार्तिकेय जी का स्वरूप होता है। यानी कन्या या कंजिका पूजन में एक लड़का स्कंद या कार्तिकेय जी का प्रतीक होता है। इस हिसाब से कन्या पूजन में 3 साल 10 साल की उम्र तक की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। 3 से लेकर 10 साल तक की 8 देवियों स्वरुपा और एक सुहागन महिला 5वीं देवी स्कंद माता के प्रतीक के रूप में पूजने से कन्या भोजन का सही लाभ मिलता है।
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