पीपल के पेड़ की पूजा क्यों होती है?

पीपल के वृक्ष को लेकर क्या धार्मिक मान्यता, इस दिन पेड़ पर जल चढ़ाने से मिलेंगे शुभ परिणाम 


सनातन धर्म में नदियों, पहाड़ों और पेड़ पौधों तक को देवताओं के समान पूजने की परंपरा है। यह हमारी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, जिसका संबंध प्रकृति प्रेम, पर्यावरण की रक्षा और ईश्वर की दी गई हर चीज के प्रति सम्मान की भावना और विज्ञान की अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है। इन्हीं मान्यताओं के चलते हम पीपल के वृक्ष की कई विशेष मौकों पर पूजा करते हैं। पीपल हिन्दू धर्म के अनुसार सबसे पवित्र वृक्षों में से एक है। तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों हमारे धर्म में पीपल का इतना महत्व है और इसके क्या लाभ है?

 

सनातन धर्म में मान्यता हैं कि कुछ पवित्र पेड़-पौधों की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ऐसा ही एक पवित्र पेड़ है पीपल, जिसकी पूजा और परिक्रमा का हमारे धर्म में विशेष महत्व है। तुलसी, बरगद समेत पीपल भी हमारी धार्मिक आस्था का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर माता लक्ष्मी का वास होता है और शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है, जिनमें लक्ष्मी जी और शनिदेव प्रमुख हैं। 


पदमपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का स्वरूप है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-'अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां' अर्थात 'में सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ' इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान बताया है। 


पौराणिक मान्यता है कि पीपल के वृक्ष में त्रिदेव निवास करते हैं। इसकी जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर तथा अग्रभाग में साक्षात ब्रह्माजी निवास करते हैं। इन सभी कथाओं और मान्यताओं का सार यही है कि पीपल एक पवित्र वृक्ष है और सनातन मान्यताओं में उसका एक विशेष स्थान है।


पीपल को मिला शनि का वरदान


पौराणिक कथा के अनुसार एक समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था उसी दौरान अगस्त्य ऋषि दक्षिण दिशा में गोमती नदी के तट पर एक वर्ष तक यज्ञ करने पहुंचे। तो कैटभ नाम के राक्षस ने पीपल का रूप लेकर यज्ञ में विघ्न डालने की कोशिश की। वो पीपल की टहनियों को तोड़ने वाले ब्राह्मणों को खा जाता था। ऐसे लगातार ब्राह्मणों की संख्या कम होते देख ऋषि शनि देव के पास गए। तो शनि देव ब्राह्मण का रूप लेकर उस पीपल के पास गए और जैसे ही राक्षस ने शनिदेव पर आक्रमण किया भगवान शनि ने उसका पेट चीरकर दैत्य का अंत कर दिया। तब शनिदेव ने प्रसन्न होकर कहा कि जो भी प्राणी शनिवार के दिन पीपल के पेड़ का स्पर्श करेगा या उसकी पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

 

पीपल के पेड़ का धार्मिक महत्व 


  • पीपल के पेड़ के नीचे शनिवार को दीपक जलाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां तक कि पीपल के पेड़ की परिक्रमा मात्र से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
  • पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने और दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
  • कुंडली में मौजूद शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए हर महीने की अमावस्या और शनिवार को पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा करने का विधान है।
  • पद्म पुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को प्रणाम कर उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है।
  • ब्रह्म मुहूर्त में पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से मन शांत रहता है। मन में बुरे विचार नहीं आते हैं।
  • पीपल के पेड़ की परिक्रमा से आर्थिक संकट से मुक्ति मिल जाती है।
  • पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
  • पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से धन, उत्तम संतान, और मोक्ष मिलता है।
  • पीपल की छाया में यज्ञ, हवन, पूजा पाठ, पुराण कथा, मुंडन आदि संस्कार करना श्रेष्ठ माना गया है।

 

 पीपल के पेड़ का धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है 


जहां एक ओर पीपल हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक पवित्र वृक्ष है। वहीं, यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत ही चमत्कारी है। पीपल के पेड़ की ऑक्सीजन उत्सर्जन क्षमता अन्य पेड़ों से ज्यादा होती है। पीपल के पेड़ के संपर्क में रहने से शरीर में पित्त संबंधी विकार नहीं होते।


पीपल के पेड़ की पूजा करने के कुछ तरीके


  • पीपल की जड़ में जल अर्पित करना चाहिए।
  • पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाना चाहिए।
  • अमावस्या और शनिवार को पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा करना चाहिए।

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