सनातन धर्म में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने और उनकी आराधना करने का बहुत अधिक महत्व है। नवरात्रि में माता के नौ रूपों के अलावा सप्त मातृकाओं की पूजा का भी विशेष विधान है। इन सप्त मातृकाओं में प्रथम स्थान देवी ब्राह्मणी या ब्राह्मी का है। ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न होने के कारण माता का नाम ब्राह्मी या ब्रह्माणी हुआ। सात मातृकाओं में से एक ब्रह्माणी हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। यह माता सरस्वती का एक रूप हैं जिसे भगवान ब्रह्मा से शक्ति प्राप्त है। आदि शक्ति स्वरूपा मां ब्रह्माणी सरस्वती में रजस गुण है।
देवी ब्रह्माणी के चार सिर और छह भुजाएं हैं। माता पीले रंग की साड़ी में हाथों में जपमाला, कमंडल, कमल का डंठल, घंटियां, वेद और त्रिशूल धारण किए हुई हैं।
माता का वाहन हंस है। मां कमलासन पर भी विराजमान हैं। माता ब्रह्माणी को बुनकर, प्रजापति, नागर ब्राह्मण, दर्जी समाज, डोडिया राजपूत समुदायों की कुलदेवी कहा गया हैं।
हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी का अत्यंत पावन महत्व है। यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आती है और भगवान विष्णु की आराधना के लिए प्रमुख मानी जाती है। इस व्रत को करने से पूर्व जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है, जिनमें योगिनी एकादशी का स्थान अत्यंत पवित्र माना गया है। यह व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस व्रत को रखने से पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शादी की सालगिरह सिर्फ एक तारीख नहीं होती, यह जीवन के उस पवित्र रिश्ते की याद दिलाती है, जिसमें दो आत्माएं साथ चलने का संकल्प लेती हैं। जैसे-जैसे साल दर साल यह बंधन मजबूत होता जाता है, वैसे-वैसे इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी बढ़ जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, मासिक कार्तिगाई एक विशेष पर्व है जो हर महीने कार्तिगई नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है, विशेषकर तमिलनाडु में।