धनतेरस व्रत कथा: माता लक्ष्मी और किसान की कहानी (Mata Laxmi aur kisan ki kahani: Dhanteras ki vrat Katha)

एक बार भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता पृथ्वी लोक पर घूम रहे थे। विष्णु जी किसी काम से दक्षिण दिशा की ओर चले गए और लक्ष्मी माता को वहीं पर रूकने के लिए कहा। इसके बाद बहुत समय बीत गया तब माता लक्ष्‍मी भी उनके पीछे जाने लगीं। कुछ दूर पर उन्हें गन्ना का खेत दिखा। माता लक्ष्‍मी ने एक गन्ना तोड़ा और उसे खाने लगीं। जब भगवान विष्णु जी ने माता को गन्ना खाते हुए देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए और माता को श्राप देते हुए कहा कि “तुम जिस किसान के खेत में से गन्ना तोड़कर खा रही हो। उसका भार उतारने के लिए तुम्हें उस किसान के घर 12 सालों तक सेवा करनी होगी।”


जिसके बाद माता लक्ष्मी को उस किसान के घर पर 12 सालों तक सेवा करनी पड़ी और इन 12 सालों में किसान के पास खूब धन और समृद्धि हुई। 12 सालों के बाद विष्णु जी जब लक्ष्मी जी को लेने आए तो उसने विष्णु जी को रोक दिया। इसपर विष्णु जी ने उसके परिवार को गंगा स्नान करके आने को कहा और कौड़ियां को गंगा में अर्पित करने के लिए बताया। उन्होंने कहा कि तुम यह कार्य करके जब आओगे तब भी हम यहीं होंगे। फिर जब किसान ने गंगा में कौड़ियां डाली तो गंगा माता बाहर निकल आईं और उसे बताया कि तुम जल्दी वापस जाओ वरना लक्ष्मी तुम्हारे घर से वापस चली जाएंगी।


जब किसान वापस आया तो उसने विष्णु जी को जाने से मना किया। तभी लक्ष्मी माता ने बताया कि उन्हें श्राप के कारण 12 सालों के लिए उसके घर पर रहना पड़ा था। अगर वह हमेशा के लिए उन्हें अपने घर पर चाहता है तो धनतेरस पर उनकी पूजा और व्रत करे। किसान ने पूरी निष्ठा के साथ धनतेरस पर व्रत किया और फिर लक्ष्मी से उसका घर संपन्न हो गया। जो भी मनुष्य धनतेरस के दिन व्रत करता हे माँ लक्ष्मी उसपर सदा अपनी कृपा बनाये रखती हैं। 


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वेंकटेश्वर भगवान की पूजा कैसे करें

वेंकटेश्वर भगवान को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। तिरुमाला के वेंकटेश्वर मंदिर में उनकी मूर्ति स्थापित है, जो विश्व के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

तेरे दरबार मे मैया खुशी मिलती है (Tere Darbar Mein Maiya Khushi Milti Hai)

तेरी छाया मे, तेरे चरणों मे,
मगन हो बैठूं, तेरे भक्तो मे ॥

शंकर जी की आरती (Shri Shankar Ji Ki Aarti)

जयति जयति जग-निवास,शंकर सुखकारी॥
जयति जयति जग-निवास,शंकर सुखकारी॥

भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती (Bhagwan Shri Chitragupta Ji Ki Aarti)

ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित, फलको पूर्ण करे॥

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