Kalpwas: महाकुंभ के दौरान घर बैठे कल्पवास कर सकते हैं या नहीं, जानिए क्या कहते हैं शास्त्र-पुराण
महाकुंभ में इस वक्त कल्पवासी, कल्पवास कर रहे हैं। कुंभ में हजारों-लाखों लोग कल्पवास व्रत रखते हैं। कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस पर्व के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले समझें कि कल्पवास का अर्थ क्या होता है। कल्पवास का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। कल्पवास निभाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इन दिनों प्रयागराज में कुम्भ मेले का आरंभ भी हो चुका है ऐसे में कल्पवास का महत्व और अधिक बढ़ गया है।
क्या होता है कल्पवास?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब प्रयागराज में शुरू होने वाले कल्पवास में एक कल्प का पुण्य मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है। तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है। मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होने के साथ एक मास के कल्पवास से इच्छित फल की प्राप्ति होती है साथ ही जन्म जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिलती है।
महाकुंभ में लाखों साधु-संतों के साथ आम लोग भी कल्पवास करते हैं। कल्पवास पौष पूर्णिमा स्नान के साथ 13 जनवरी से शुरू होकर एक माह बाद माघी पूर्णिमा तक चलेगा। कल्पवास बहुत ही कठिन होता है। कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदी के तट पर किए जाने वाले इस अनुष्ठान का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और भगवान के करीब पहुंचना होता है। कल्पवास करने वाले भगवान की भक्ति और साधना में लीन रहते हैं। लोगों के मन में कल्पवास को लेकर कई सवाल आते हैं कि महाकुंभ के दौरान घर बैठे कल्पवास किया जा सकता है या नहीं? आइए जानते हैं इस बारे में शास्त्र और पुराण क्या कहते हैं...
क्या घर बैठे कल्पवास किया जा सकता है?
कल्पवास सिर्फ महाकुंभ क्षेत्र या किसी पवित्र नदी के किनारे ही किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश कुंभ मेले में नहीं पहुंच सकता है तो ऐसे में घर में कल्पवास जैसा जीवन जीने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन घर पर कल्पवास करने में बहुत कठिनाईयां आती हैं क्योंकि कल्पवास के नियम बहुत ही कठोर होते हैं, जिनका पालन घर में करना संभव नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके नियम के मुताबिक, दिन में तीन बार स्नान और कठोर अनुशासन का पालन करना होता है।
घर में कल्पवास जैसा जीवन जीने के नियम
- सुबह जल्दी उठकर गंगाजल मिले पानी से स्नान कर लेना चाहिए।
- नियमित रूप से पूजा, ध्यान और भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- सात्विक और शुद्ध भोजन ही खाना चाहिए।
- कल्पवास का जीवन जीते समय धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना चाहिए।
- जरूरतमंदों की सेवा करनी चाहिए।
- दान-पुण्य करना चाहिए।
- सुख-सुविधाओं से दूरी बनानी चाहिए।
- अनुशासन में रहना चाहिए।
- मौन व्रत रखना चाहिए।
- अपना समय आत्म चिंतन में व्यतीत करना चाहिए।
अक्षय तृतीया को ‘अखा तीज’ भी कहा जाता है, जो वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कभी भी समाप्त नहीं होता है। इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।
अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त के किया जा सकता है और उसका फल अक्षय होता है, अर्थात् कभी नष्ट नहीं होता।
परशुराम जयंती भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी के जन्मदिन के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है और इस साल 29 अप्रैल को परशुराम जयंती मनाई जाएगी। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम एक चिरंजीवी अवतार हैं जो धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए बार-बार पृथ्वी पर आते हैं।
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया की तिथि को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इस दिन किए गए सभी पुण्य कार्यों, जैसे दान, पूजा और शुभ आरंभ का फल ‘अक्षय’ यानी कि कभी न समाप्त होने वाला होता है।