महाविद्या त्रिपुर भैरवी को काली का स्वरुप माना गया है। त्रिपुर भैरवी के अनेकों नाम हैं और देवी की अनेक सहायिकाओं को भैरवी रुप में भी जाना जाता है। देवी का स्वरुप शत्रुओं का नाश करने के लिए विख्यात हैं। त्रिपुर की सुरक्षा का दायित्व इन्हें प्राप्त हैं। त्रिपुर का अर्थ तीनों लोकों से है और भैरवी का संबंध काल भैरव से है। विकराल स्वरुप और उग्र स्वाभाव वाले काल भैरव भगवान शिव के अवतार है, जिनका संबंध भय के विनाश से हैं। मां के तीन नेत्र और चार भुजाएं हैं। मां के बाल खुले हैं। इनका एक नाम षोडशी भी है। शास्त्रों के अनुसार मां को और नामों से भी जाना जाता है, जैसे रुद्र भैरवी, चैतन्य भैरवी, नित्य भैरवी, भद्र भैरवी, कौलेश भैरवी, श्मशान भैरवी, संपत प्रदा भैरवी। मां त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किए हुए हैं। मां ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है। मां त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग करने से माता अकिशीघ्र प्रसन्न हो जाती है।आज हम यहां आपको त्रिपुर भैरवी माता के मंदिर के बारें में बताने जा रहे हैं।
त्रिपुर भैरवी माता मंदिर
वाराणसी की विशिष्टि शैली की सकरी गलियों में मां त्रिपुर भैरवी का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि त्रिपुर भैरवी के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। मां का ऐसा महात्म्य है कि इनके आस-पास का पूरा मोहल्ला त्रिपुर भैरवी के नाम से जाना जाता है। मां त्रिपुर भैरवी की स्थान 10 महाविद्या में 5वें नंबर पर आता है। कहा जाता है कि मां की अद्भुत प्रतिमा स्वयंभू है। मा के भक्तों को सहर रुप से विद्या प्राप्त होती है। मान्यता के अनुसार मां अपने भक्तों को विद्या के साथ सुख-सम्पत्ति भी प्रदान करती हैं। छोटे से इस मंदिर में मुख्य द्वार के सामने मां की बेहद भावपूर्ण मुद्रा की प्रतिमा स्थापित है जो कि गली से दिखाई देती है। मंदिर परिसर में ही एक तरफ त्रिपुरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित हैं। वहीं वर्ष में पड़ने वाले दोनों नवरात्र में मां का नौ दिन अलग-अलग ढ़ंग से श्रृंगार किया जाता हैं। नवरात्र में मां नौ दिन अलग-अलग ढंग से श्रृंगार किया जाता है। नवरात्र में मां के दर्शन के लिए दर्शानिर्थियों का काफी संख्या बढ़ जाती है। जबकि सप्ताह में मंगलवार एवं शुक्रवार को भी मां के दरबार में दर्शनार्थी मत्था टेकते हैं। ये मंदिर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है।सुबह की आरती 9 बजे एवं रात की शयन आरती 10 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है।
त्रिपुर भैरवी की पूजा का महत्व
माता त्रिपुर भैरवी की पूजा करने से योग्य संतान प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है। इसके साथ ही सभी तरह की आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति तो होती ही है इसके साथ ही शक्ति- साधना एवं भक्ति-मार्ग में किसी भी रुप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक है। भक्ति-भाव से मंत्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती है। उनकी प्रसन्नता से सादक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है।
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। अखाड़ों का आना भी शुरू हो गया है। महर्षि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इनकी स्थापना की थी। यह कुंभ मेले की शान होते है।
शैव संप्रदाय के 7 प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें से ही एक अखाड़ा है 'आनंद अखाड़ा'। इसका पूरा नाम 'श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती’ है।
महाकुंभ की शुरुआत में अब 1 महीने का समय बचा है। लगभग सभी अखाड़े प्रयागराज भी पहुंच चुके हैं। लेकिन इन दिनों शैव संप्रदाय का एक अखाड़ा चर्चा में बना हुआ है।
अपने बचपन से ही हमने देखा है कि हमारे घरों में बड़े-बुजुर्गों को चरण स्पर्श करके प्रणाम करना कितना महत्वपूर्ण माना जाता था। उनके आशीर्वाद पाने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।