सनातन धर्म में वायु देवता बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वेदों में इनका कई बार वर्णन मिलता है और इन्हें भीम का पिता और हनुमान के आध्यात्मिक पिता माना जाता है। वायु पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) में से एक है और इसे जीवन का आधार माना जाता है। वायु को प्राण शक्ति का प्रतीक माना जाता है जो सभी जीवित प्राणियों में जीवन का संचार करती है।
इतना ही नहीं वायु देवता को उत्तर-पश्चिम दिशा का रक्षक माना जाता है। आपको बता दें, वायु देवता को गंधर्वों यानी कि स्वर्गलोक के संगीतज्ञ का राजा भी माना जाता है। वायु देवता को अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है और इन्हें प्रलय लाने की शक्ति भी बताई जाती है। अब ऐसे में अगर आप वायुदेव की पूजा कर रहे हैं, तो उनकी पूजा किस विधि से करने से लाभ हो सकता है और वायुदेव की पूजा कब करनी चाहिए। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी द्वारा बताए गए जानकारी साझा कर रहे हैं। इसलिए आप इस लेख को विस्तार से पढ़ें।
वायुदेव की पूजा करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इनकी पूजा विधिवत रूप करने से शुभ परिणाम भी मिलते हैं।
वायुदेव की पूजा विशेष रूप से सूर्योदय के समय करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप किसी भी पंचांग या पंडित से पूछकर शुभ मुहूर्त निकलवा सकते हैं और उस मुहूर्त में वायुदेव की पूजा कर सकते हैं।
वायुदेव की पूजा करने से शरीर में वायु तत्व का संतुलन बना रहता है। वायुदेव की पूजा करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है। वायुदेव की पूजा करने से लंबा और स्वस्थ जीवन मिलता है। वायुदेव की पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
अगर आप वायुदेव की पूजा कर रहे हैं, तो पूजा-पाठ के बाद उनकी आरती अवश्य करें।
ॐ जय वायुदेव, जय जयकार
सभी लोक के स्वामी, तुम हो हमारे
तुमसे मिलता है जीवन का आधार
तुम ही हो हमारे संसार
तुमसे मिलता है शीतल हवा का झोंका
तुमसे मिलता है जीवन का स्रोत
तुमसे मिलता है आनंद का भंडार
तुम ही हो हमारे भगवत
तुमसे मिलता है बल और शक्ति
तुमसे मिलता है जीवन की राह
तुमसे मिलता है मोक्ष की प्राप्ति
तुम ही हो हमारे साथ
ॐ जय वायुदेव, जय जयकार
महाभारत में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। इसलिए, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अपने प्राण त्यागे।
कार्तिगाई दीपम पर्व प्रमुख रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका समेत विश्व के कई तमिल बहुल देशों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
सनातन हिंदू धर्म में, कार्तिगाई का विशेष महत्व है। यह पर्व दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। इस दिन लोग अपने घरों और आस-पास दीपक जलाते हैं।
जया एकादशी का उपवास हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की पूजा आराधना करने की मान्यता है।