सावित्री शक्तिपीठ या मां भद्रकाली मंदिर हरियाणा के थानेसर में द्वैपायन झील के पास स्थित है। यह मंदिर देवी माँ काली के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। माता सती का दाहिना टखना इस मंदिर के सामने एक कुएँ में गिरा था। इस शक्तिपीठ को सावित्रीपीठ, देवीकूप, कालिकापीठ भी कहा जाता है।
इस स्थान पर सती को सावित्री और भगवान शिव को स्थानु महादेव के नाम से पूजा जाता है। थानेसर का नाम "स्थानेश्वर" शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है "भगवान का स्थान"। सावित्री के पति का नाम स्थानु है। इसलिए इस शहर को स्थानेश्वर या थानेसर कहा जाता है। यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं। वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं।
मंदिर में घोड़े दान करने की मान्यता
सावित्री शक्ति पीठ मंदिर एक आधुनिक मोर्टार से निर्मित मंदिर है जो एक मुख्य और 2 छोटे मंदिर की चोटी के साथ विशिष्ट हिंदू मंदिर शैली में है। मुख्य मंदिर की चोटी लगभग 80-100 फीट ऊँची है। मंदिर का एक विशाल परिसर क्षेत्र है। मुख्य द्वार मुख्य सड़क पर खुलता है।
मंदिर में घोड़े दान करने की मान्यता महाभारत काल से चली आ रही है। मान्यता के अनुसार, श्रीकृष्ण पांडवों के साथ मंदिर में आए थे। उन्होंने विजय के लिए मां से मन्नत मांगी थी। पांडवों ने विजय पाने के बाद मंदिर में आकर घोड़े दान किए थे। तब से यही प्रथा चलती आ रही है। लोग आज भी अपनी मन्नत पूरी होने पर घाेड़े दान करते हैं। मंदिर में घोड़ों की लंबी लाइन लगी हुई हैं।
मंदिर मुख्य कक्ष में माँ भद्रकाली की मूर्ति पूजा के लिए रखी गई है और सामने के दरवाजे पर दाहिने पैर के टखने की एक धातु की मूर्ति भी रखी गई है। इसके अलावा मंदिर में माँ सरस्वती, माँ गायत्री सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति हैं।
कुरुक्षेत्र जिले में स्थित इस शक्तिपीठ दिल्ली की दूरी 160 किमी है। कुरुक्षेत्र जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है। जो देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।
हरियाणा रोडवेज बसें और अन्य पड़ोसी राज्य निगम बसें कुरुक्षेत्र को दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों जैसे अन्य शहरों से जोड़ती हैं।
हरछठ या हलछठ पर्व के दिन व्रत रखने से संतान-सुख की प्राप्ति होती है। अब आपके दिमाग में हरछठ व्रत को लेकर कई सवाल आ रहे होंगे। तो आइए आज भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि हरछठ पर्व क्या है और इसमें व्रत रखने से हमें क्यों संतान प्राप्ति होती है?
जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाने के पीछे देश के दो संप्रदाय हैं जिनमें पहला नाम स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरा नाम वैष्णव संप्रदाय का है।
भगवान अपने भक्तों को कब, कहा, क्या और कितना दे दें यह कोई नहीं जानता। लेकिन भगवान को अपने सभी भक्तों का सदैव ध्यान रहता है। वे कभी भी उन्हें नहीं भूलते। भगवान उनके भले के लिए और कल्याण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
मुरलीधर, मुरली बजैया, बंसीधर, बंसी बजैया, बंसीवाला भगवान श्रीकृष्ण को इन नामों से भी जाना जाता है। इन नामों के होने की वजह है कि भगवान को बंसी यानी मुरली बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण मुरली बजाते भी उतना ही शानदार हैं।