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वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म की उन विशेष परंपराओं में से एक है जो स्त्री के श्रद्धा, समर्पण और पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं। विशेष बात यह है कि पहली बार इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों के लिए कुछ खास नियमों और विधियों का पालन करना आवश्यक होता है। सही विधि से किए गए व्रत से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। इस वर्ष यह 26 मई को मनाया जाएगा।
व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना अनिवार्य है। स्नान के बाद स्वच्छ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि ये रंग सौभाग्य और ऊर्जा का प्रतीक होते हैं। इसके बाद मन को शांत करें और पूजा की तैयारी करें।
वट वृक्ष ‘बरगद का पेड़’ को इस दिन विशेष रूप से पूज्य माना जाता है। वृक्ष के नीचे साफ-सफाई करें, वहां पूजा की चौकी सजाएं। वृक्ष को जल चढ़ाएं, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत और सिंदूर से पूजन करें। फिर कच्चे सूत या कलावे को वृक्ष के चारों ओर सात बार लपेटते हुए परिक्रमा करें। यह प्रक्रिया पति के जीवन में सात जन्मों तक साथ की कामना को दर्शाती है।
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