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चंद्र दर्शन शुभ मुहूर्त 2025

चंद्र दर्शन शुभ मुहूर्त 2025

Chandra Darshan 2025: चंद्र दर्शन करने से होती है मनकोमाओं की पूर्ति, जानें पूजा विधि और चंद्र दर्शन की तिथि 



चंद्र दर्शन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो अमावस्या के बाद पहली बार चंद्रमा के दर्शन से जुड़ा हुआ है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे मन की शांति, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। पुराणों में भी चंद्रदेव को पूजनीय देवताओं में गिना गया है इसी कारण से इस दिन व्रत रखना बहुत शुभ होता है। लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस दिन उपवास रखते हैं। इस बार चंद्र दर्शन 1 मार्च को होगा। इस दिन चंद्रमा के उदय और अस्त होने के समय के अनुसार, भक्तजन चंद्रदेव के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। आपको पूजा में आसानी हो, इसके लिए हम लेख के जरिए हम आपको पूजा विधि बताने जा रहे हैं।


चंद्रर्शन की तिथि और समय

   

ब्रह्म मुहूर्त

04:42 AM से 05:32 AM तक

प्रातः सन्ध्या

05:07 AM से 06:21 AM तक

अभिजित मुहूर्त

11:47 AM से 12:34 PM तक

विजय मुहूर्त

02:07 PM से 02:53 PM तक

गोधूलि मुहूर्त

05:57 PM से 06:22 PM तक

सायाह्न सन्ध्या

06:00 PM से 07:14 PM तक

अमृत काल

04:40 AM, मार्च 02 से 06:06 AM, तक (02 मार्च)

निशिता मुहूर्त

11:45 PM से 12:35 AM, तक (02 मार्च)

त्रिपुष्कर योग

06:21 AM से 11:22 AM तक

 


चंद्र दर्शन पूजा विधि 


  • शाम के समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद चंद्रमा के निकलते ही गंगाजल या शुद्ध जल से अर्घ्य दें।
  • दीपक जलाकर चंद्रदेव की आरती करें और धूप या अगरबत्ती अर्पित करें। चंद्रमा को मिठाई और फल का भोग लगाए।
  • चंद्रदेव के मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ सों सोमाय नमः" या चंद्र गायत्री मंत्र "ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः"।
  • कुछ भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।
  • इस दिन दान पुण्य करना भी बेहद शुभ माना जाता है।



चंद्र दर्शन का महत्व


हिंदू धर्म में चंद्रमा को मन और भावनाओं का स्वामी माना जाता है। चंद्र दर्शन के दिन चंद्रदेव की पूजा करने से मानसिक शांति, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और चंद्रदेव के दर्शन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। इसके अलावा, चंद्रमा की पूजा करने से स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, विशेषकर मानसिक तनाव में कमी आती है।


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साल में 2 बार क्यों मनाई जाती है वट सावित्री

भारत की परंपराएं अपनी गहराई और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं परंपराओं में एक प्रमुख स्थान रखता है ‘वट सावित्री व्रत’, जिसे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और अखंड सौभाग्य की कामना से करती हैं।

वट सावित्री व्रत की तिथि और मुहूर्त

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुखद वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है।

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री का व्रत पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए किया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है।

महिलाएं क्यों करती हैं वट वृक्ष की पूजा

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, तथा 2025 में यह व्रत सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा।

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