कार्तिगाई दीपम जिसे तमिल संस्कृति में विशेष रूप से मासिक कार्तिगाई के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है जो मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है। यह पर्व दीपों का त्योहार है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय और भगवान शिव तथा उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिगाई नक्षत्र के दिन जब पूर्णिमा होती है, उस दिन कार्तिगाई दीपम का आयोजन होता है, जो इस साल 22 जून, रविवार को है।
पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। दोनों अपने-आप को सर्वश्रेष्ठ मानते थे। इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक विशाल अग्नि स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट होकर दोनों देवताओं को चुनौती दी कि वे उस अग्नि के आदि और अंत का पता लगाएं।
ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर उड़ान भरी, वहीं विष्णु वराह (सूअर) का रूप लेकर नीचे की ओर गए। परंतु वे दोनों ही शिव के अग्निरूप की सीमाओं को जानने में असफल रहे। अंततः भगवान शिव ने अपनी दिव्यता और सर्वोच्चता सिद्ध की। इस अग्नि स्तंभ को ही बाद में अरुणाचल ज्योति के रूप में पूजा जाने लगा, और इसी घटना की स्मृति में कार्तिगाई दीपम पर्व मनाया जाता है।
दीपक जलाना जीवन से अंधकार और अज्ञान को हटाकर ज्ञान और शांति का मार्ग प्रशस्त करने का प्रतीक है। यह पर्व आध्यात्मिक रूप से भी यह सिखाता है कि जब मन में प्रकाश होता है, तभी जीवन में भी उजाला होता है।
इस दिन भगवान शिव के अग्निरूप और भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय को शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। वे राक्षसों के नाशक और भक्तों के रक्षक हैं। पूजा में विशेष मंत्रों का जाप, फल, पुष्प और दीप अर्पण किया जाता है।
हर साल माघ माह में कल्पवास के लिए प्रयागराज में लोग पहुंचते हैं। लेकिन इस साल प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ माघ माह में होने जा रहा हैं।
कल्पवास हिंदू धर्म की एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो माघ महीने में प्रयागराज के संगम तट पर की जाती है। यह व्रत व्यक्ति को भगवान के और करीब लाने में मदद करता है। इस बार माघ माह 21 जनवरी से शुरु हो रहा है।
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत अगले महीने होने जा रही है। यह 13 जनवरी से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के मौके पर खत्म होगा। इस दौरान 6 शाही स्नान होंगे। पंचागों के मुताबिक ऐसा संयोग 144 साल में बना है।
महाकुंभ मेला भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का अद्वितीय पर्व है। इसे आस्था, भक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। वहीं कुंभ में होने वाले शाही स्नान का भी खास महत्व है।