परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
ग्वाल-बाल इक-इक से पूछे
कहाँ है मुरली वाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
कोई ना जाए कुञ्ज गलिन में,
तुझ बिन कलियाँ चुनने को ।
तुझ बिन कलियाँ चुनने को ।
तरस रहे हैं..
तरस रहे हैं जमुना के तट,
धुन मुरली की सुनने को ।
अब तो दरस दिखा दे नटखट,
क्यों दुविधा में डाला रे ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
संकट में है आज वो धरती,
जिस पर तूने जनम लिया ।
जिस पर तूने जनम लिया ।
पूरा कर दे...
पूरा कर दे आज वचन वो,
गीता में जो तूने दिया ।
कोई नहीं है तुझ बिन मोहन,
भारत का रखवाला रे ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
ग्वाल-बाल इक-इक से पूछे
कहाँ है मुरली वाला रे ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
बड़ी देर भई नंदलाला,
तेरी राह तके बृजबाला ।
होलिका दहन से पहले 8 दिन होलाष्टक तिथि लगती है जिसमें कोई मांगलिक कार्य नहीं होता है। पुराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि यह समय भक्त प्रह्लाद पर किए गए अत्याचारों को दर्शाता है।
बरसाने में हर साल लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मनाई जाती है। इस साल 2025 में यह त्योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ राधारानी से भेंट करने के लिए बरसाना गए, और वहां जाकर राधारानी और उनकी सखियों को छेड़ने लगे।
बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस साल 8 मार्च को पड़ रही है। यह त्योहार राधा-कृष्ण के प्रेम की लीलाओं को दर्शाता है।
होली भारत में रंगों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, लेकिन जब ब्रज की होली की बात आती है, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मथुरा, वृंदावन, नंदगांव और बरसाना में यह पर्व अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम लीलाओं से जुड़े इस उत्सव में भक्ति, संगीत, नृत्य और उल्लास का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।