गणपति के चरणों में,
ध्यान लगा ले रे,
रिद्धि और सिद्धि,
तुझे सब मिल जाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
प्रथम पूज्य तुम हो देवा,
करूँ नित्य तेरी सेवा,
मोदक भोग लगाना है,
बप्पा तुम्हे मनाना है,
नाचे और झूमे,
और तुम्हे मनाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
उत्सव तेरा मनाना है,
अपने घर में लाना है,
फूलो और कलियों से,
मंदिर तेरा सजाना है,
ढोलक और छेणा,
मृदंग बजाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
गौरा माँ के प्यारे है,
शिव के राज दुलारे है,
इस कलयुग में भक्तो के,
ये ही सच्चे सहारे है,
भव में हो नैया,
यही पार लगाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
इनकी शरण में आओगे,
सुख सम्रद्धि पाओगे,
भव सागर से तरना है,
इनका दर्शन करना है,
ज़िन्दगी में तेरे,
खुशियाँ भर जाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
गणपति के चरणों में,
ध्यान लगा ले रे,
रिद्धि और सिद्धि,
तुझे सब मिल जाए रे,
गणपति के चरणो में,
ध्यान लगा ले रे ॥
सनातन धर्म में कलावा बांधने का काफ़ी महत्व है। इसे रक्षा सूत्र के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, हाथ पर कलावा बांधने की शुरुआत माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है।
सनातन धर्म के लोगों की भगवान कृष्ण से खास आस्था जुड़ी है। कृष्ण जी को भगवान विष्णु का ही एक अवतार माना जाता है, जो धैर्य, करुणा और प्रेम के प्रतीक हैं।
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो इस साल 22 दिसंबर को पड़ रही है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पहली पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्म की याद में मनाया जाता है।
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो इस साल 22 दिसंबर को मनाया जा रहा है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पहली पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्म की याद में मनाया जाता है।