प्रभु केवट की नाव चढ़े
कभी कभी भगवान को भी भक्तो से काम पड़े ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े ॥
अवध छोड़ प्रभु वन को धाये,
सिया-राम लखन गंगा तट आये ।
केवट मन ही मन हर्षाये,
घर बैठे प्रभु दर्शन पाए ।
हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे केवट मगन खड़े ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चड़े ॥
प्रभु बोले तुम नाव चलाओ,
पार हमे केवट पहुचाओ ।
केवट बोला सुनो हमारी,
चरण धुल की माया भारी ।
मैं गरीब नैया है मेरी नारी ना होए पड़े ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चड़े ॥
चली नाव गंगा की धारा,
सिया राम लखन को पार उतारा ।
प्रभु देने लगे नाव चढाई,
केवट कहे नहीं रघुराई ।
पार किया मैंने तुमको,
अब मोहे पार करो ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े ॥
केवट दौड़ के जल भर ले आया,
चरण धोय चरणामृत पाया ।
वेद ग्रन्थ जिन के गुण गाये,
केवट उनको नाव चढ़ाए ।
बरसे फूल गगन से ऐसे,
भक्त के भाग्य जगे।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े ॥
अमावस्या एक ऐसा दिन होता है जब ना तो चंद्रमा क्षय होता है ना ही उदित। दरअसल, अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का समय होता है। चंद्रमा हमारे मन मस्तिष्क पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है।
संगम तट पर लगे महाकुंभ में लाखों साधु-संत अपनी धुनी रमाए प्रभु की भक्ति में लीन हैं। इनमें नागा साधु, अघोरी, साधु, संत शामिल हैं। इन संतों में कई तरह के संन्यासी आए हुए हैं। इन्हें लेकर कई तरह के रहस्य भी लोगों के मन में हैं।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को स्नान और दान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक माह आने वाली अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं।
मौनी अमावस्या पर महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान होगा। इस बार अमावस्या तिथि को काफी खास माना जा रहा है। बता दें कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और रोजाना करीब लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं।