ना जाने कौन से गुण पर,
दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं,
यही हरि भक्त गाते हैं ॥
॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥
नहीं स्वीकार करते हैं,
निमंत्रण नृप सुयोधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर भोग,
छिलकों का लगाते हैं ॥
॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥
न आये मधुपुरी से गोपियों की,
दु:ख व्यथा सुनकर ।
द्रुपदजा की दशा पर,
द्वारका से दौड़े आते हैं ॥
॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥
न रोये बन गमन में,
श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में ,
आँसु बहाते हैं ॥
॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥
कठिनता से चरण धोकर,
मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।
वो चरणोदक स्वयं केवट के,
घर जाकर लुटाते हैं ॥
॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥
ना जाने कौन से गुण पर,
दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं,
यही हरि भक्त गाते हैं ॥
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है, जो ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के देवता हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि प्राप्त होती है। विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी दोनों ही भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के अवसर हैं।
दुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र एक पवित्र हिंदू मंत्र या स्तोत्र है, जिसमें देवी दुर्गा के 108 नामों का वर्णन है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती के अंदर आता है और देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है।
देव्याः कवचम् का अर्थात देवी कवच यानी रक्षा करने वाला ढाल होता है ये व्यक्ति के शरीर के चारों ओर एक प्रकार का आवरण बना देता है, जिससे नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
पवित्र ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है। अर्गला को शक्ति के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह चण्डी पाठ का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।