देव विवाह क्या है?

प्राचीन समय की आदर्श विवाह परंपरा मानी गई है देव विवाह, यज्ञ के बदले होता है विवाह 


हिंदू धर्मग्रंथों में विवाह को धर्म और सामाजिक कर्तव्य का अटूट हिस्सा माना गया है। मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है। जिनमें देव विवाह को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यह विवाह मुख्यतः धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता था। देव विवाह में पिता अपनी कन्या को यज्ञ कराने वाले पुरोहित या विद्वान को समर्पित करता है। इसे प्राचीन काल में एक आदर्श विवाह का स्वरूप माना गया था। हालांकि, आधुनिक युग में यह विवाह अप्रचलित हो गया है। इसके बावजूद, इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व आज भी प्रासंगिक है। आइए इस लेख में देव विवाह के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


क्या होता है देव विवाह?


देव विवाह एक ऐसा विवाह है जिसमें कन्या के पिता किसी धार्मिक कार्य, यज्ञ या सेवा के लिए अपनी कन्या का विवाह एक योग्य पुरोहित या विद्वान से करते हैं। यह विवाह तब होता है जब कोई व्यक्ति यज्ञ या धार्मिक कार्य करवाता है, और इसके बदले में पुरोहित को सम्मान स्वरूप कन्या का विवाह प्रस्तावित करता है। इस विवाह में यह सुनिश्चित किया जाता है कि कन्या की सहमति हो। देव विवाह को मध्यम श्रेणी का विवाह माना गया है। जो ब्रह्म विवाह से नीचे लेकिन असुर या राक्षस विवाह से ऊपर है।


देव विवाह की प्रक्रिया


देव विवाह की प्रक्रिया में धार्मिक और पारंपरिक नियमों का पालन किया जाता था।


  1. धार्मिक उद्देश्य: जब कोई यज्ञ, हवन या अन्य धार्मिक कार्य आयोजित किया जाता था, तो पुरोहित को उसका नेतृत्व करने के लिए बुलाया जाता था। यज्ञ के सफल समापन के बाद, कन्या का पिता अपनी कन्या को पुरोहित के साथ विवाह सूत्र में बांधने का प्रस्ताव रखता था।
  2. कन्या की सहमति: देव विवाह में कन्या की सहमति अनिवार्य होती थी। बिना कन्या की इच्छा के यह विवाह संपन्न नहीं किया जा सकता था।
  3. विवाह की विधि: विवाह सभी वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न होता था। मंत्रोच्चार, अग्नि के समक्ष फेरे और अन्य पारंपरिक रस्में निभाई जाती थीं।
  4. पुरोहित का चुनाव: कन्या का विवाह उस पुरोहित से होता था जो धार्मिक कार्यों में निपुण और चरित्रवान होता था। यह सुनिश्चित किया जाता था कि वर एक योग्य और धार्मिक व्यक्ति हो।


देव विवाह का महत्व


  1. धार्मिक कर्तव्य की पूर्ति: देव विवाह धर्म और समाज के प्रति कर्तव्य की पूर्ति का प्रतीक है। यह विवाह धार्मिक संस्कारों और यज्ञों को अधिक पवित्र और प्रभावी बनाने में सहायक होता था।
  2. कन्यादान की पवित्रता: इस विवाह में कन्यादान को एक महान कार्य माना गया है। पिता अपनी पुत्री को धर्म के लिए समर्पित करता था, जो एक उच्च आदर्श था।
  3. आदर्श विवाह: प्राचीन समय में इसे आदर्श विवाह माना जाता था, क्योंकि इसमें न तो धन का लेन-देन होता था और न ही कन्या का शोषण। यह विवाह पूर्णतः सेवा और धर्म पर आधारित होता था।
  4. समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्य: देव विवाह ने समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया। यह विवाह धार्मिक विद्वानों और पुरोहितों को सम्मान देने का एक तरीका भी था।


देव विवाह का प्राचीन और आधुनिक संदर्भ


प्राचीन समय में देव विवाह मुख्यत यज्ञ और धार्मिक कार्यों के लिए प्रचलित था। इसे आदर्श और सरल विवाह का स्वरूप माना जाता था।

यह विवाह समाज में पुरोहित वर्ग की प्रतिष्ठा और धर्म के प्रति समर्पण को दर्शाता था। जबकि, आधुनिक समय में देव विवाह अब अप्रचलित हो गया है। आज के समाज में इस विवाह का धार्मिक महत्व तो है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसे अपनाया नहीं जाता। आधुनिक विवाह व्यवस्था में माता-पिता और वर-वधू की सहमति के साथ विवाह संपन्न किए जाते हैं।


देव विवाह की विवाहों से तुलना


देव विवाह की तुलना में ब्रह्म विवाह अधिक पवित्र और आदर्श माना जाता है। ब्रह्म विवाह में वर-वधू दोनों की शिक्षा और ब्रह्मचर्य पर जोर दिया जाता है। जबकि, देव विवाह असुर और राक्षस विवाह से कहीं अधिक श्रेष्ठ और नैतिक था। इसमें ना तो धन का लेन-देन होता था और ना ही किसी प्रकार का शोषण।


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