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क्या है कर्णवेध संस्कार

क्या है कर्णवेध संस्कार

क्या होता है कर्णवेध संस्कार? इससे जुड़ा होता है शिशु का बौद्धिक विकास 


सनातन धर्म के 16 प्रमुख संस्कारों में नौवां संस्कार कर्णवेध कहलाता है। कर्ण यानि कान और वेध यानी वेधना या छेदना होता है। इसे श्रवणेन्द्रि भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस संस्कार के बाद ही बच्चे का बौद्धिक विकास होता है। साथ ही इससे अच्छी सेहत जैसे लाभ भी मिलते हैं। इस संस्कार को उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है। तो आइए, इस आर्टिकल में कर्णवेध संस्कार के महत्व, पौराणिक मान्यता और विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं। 



क्यों किया जाता है कर्णवेध संस्कार?


ऐसी मान्यता है कि जिन शिशुओं का कर्णभेद संस्कार नहीं होता वे अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते हैं। हालांकि, प्राचीन समय में तो यह संस्कार बालक और बालिका दोनों का ही किया जाता था। परंतु अब समय के साथ-साथ यह संस्कार केवल कन्या का ही किया जाता है। बता दें कि इस संस्कार को आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक करवाया जा सकता है। इस संस्कार को करने से मेधा शक्ति बढ़ती है। साथ ही अच्छे से ज्ञान अर्जित करने में भी मदद मिलती है। इससे जातक बुद्धिमान बनता है।



कब किया जाता है कर्णवेध संस्कार? 


इस संस्कार को 12वें या 16वें दिन किया जाता है। लेकिन अगर इस दौरान इसे ना किया जा सके तो यह संस्कार छठे, सातवें या आठवें मास में भी किया जा सकता है। वहीं, अगर इस दौरान भी यह संस्कार ना हो पाए। तो जातक के जन्म के विषम वर्ष यानि तीसरे, पांचवे अथवा सातवें साल में भी इसे पूर्ण किया जा सकता है।



जानिए कर्णछेद संस्कार की विधि 


सर्वप्रथम बच्चे के कान में मंत्र पढ़ा जाता है, जो इस प्रकार है। “ भद्रं कर्णेभि: क्षृणयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:। स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायु:।।” इस मंत्र को शिशु के कान में अभिमंत्रित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण और वैश्य वर्ण के जातकों का यह संस्कार चांदी की सुई से किया जाता है। वहीं, क्षत्रिय वर्ण के जातकों का सोने की सुई से यह संस्कार किया जाता है। जबकि, शूद्र वर्ण के जातकों का यह संस्कार लोहे की सुई से किया जाता है। इसके अलावा एक अन्य मान्यता के अनुसार कुछ जातकों का शाही के कांटे से भी कर्णवेध संस्कार पूर्ण किया जाता है। इस संस्कार के दौरान बच्चे के कान में देवपूजा के बाद मंत्र पढ़ा जाता है। फिर पहले दाहिने कान में और उसके बाद बाएं कान में छेद किया जाता है। वहीं, बालिका को पहले बाएं और फिर दाएं कान में छेद किया जाता है। इसके बाद बायीं नासिका में भी छिद्र किया जाता है।



कर्णवेध संस्कार से जुड़ी मान्यताएं


  1. कर्णवेध, हिन्दू धर्म के प्रमुख संस्कारों में से एक है। 
  2. यह कान छिदवाने की ही एक रस्म है। 
  3. इसे आम तौर पर जीवन के पहले और पांचवें साल के बीच पूर्ण किया जाता है। 
  4. कर्णवेध संस्कार को वैज्ञानिक आधार पर किया जाता है। 
  5. यह संस्कार बालक की शारीरिक बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है। 
  6. कर्णवेध संस्कार से श्रवण शक्ति बढ़ती है। 
  7. कर्णवेध संस्कार से मस्तिष्क का विकास होता है और तनाव कम होता है। 
  8. कर्णवेध संस्कार से आंखों की रोशनी तेज होती है। 
  9. कर्णवेध संस्कार से मानसिक बीमारी, घबराहट, चिंता जैसी समस्याएं दूर होती हैं। 
  10. कर्णवेध संस्कार से कन्याओं का मासिक धर्म नियमित रहता है।
  11.  ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में कर्णवेध संस्कार करना अच्छा माना जाता है। 
  12. कर्णवेध संस्कार को उपनयन संस्कार से पहले कराना चाहिए।
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