आज के समय में हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में अव्वल रहे। इसके लिए वे स्कूल, ट्यूशन, कोचिंग और ऑनलाइन क्लासेस तक हर संभव प्रयास करते हैं। वहीं बच्चे भी कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन कई बार मेहनत के बावजूद उन्हें वांछित परिणाम नहीं मिलते।
ऐसी स्थिति में जरूरी है कि हम सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि उससे जुड़े हर छोटे-बड़े पहलू पर ध्यान दें। वास्तु और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चों के स्कूल बैग से जुड़ी कुछ जरूरी बातें उनकी पढ़ाई पर सकारात्मक या नकारात्मक असर डाल सकती हैं।
रंगों का बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव होता है और यह असर पढ़ाई पर भी दिख सकता है।
इसके विपरीत, काला और गहरा नीला रंग राहु और शनि ग्रह का प्रतीक माने जाते हैं। यह रंग पढ़ाई में रुकावट पैदा कर सकते हैं, जिससे बच्चा पढ़ा हुआ भूल सकता है या उसकी प्रगति धीमी हो सकती है। इसलिए बैग का चुनाव करते समय इन रंगों से बचना बेहतर होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, सिर्फ बैग का रंग ही नहीं बल्कि उसे रखने की दिशा और स्थिति भी मायने रखती है।
बच्चों की आदत होती है कि वे बैग में कई बार फटे पेज, पेंसिल की शार्पनिंग, टूटी पेंसिल, बेकार स्टेशनरी या खेल-खिलौने भी रख लेते हैं। वास्तु के अनुसार, बैग में ऐसी चीजें नकारात्मक ऊर्जा लाती हैं और पढ़ाई में रुकावट पैदा कर सकती हैं।
इन छोटे-छोटे उपायों का पालन करके न केवल बच्चे की एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उसका प्रदर्शन भी सुधर सकता है। कई बार हम सिर्फ पढ़ाई या ट्यूटर बदलकर हल ढूंढते हैं, जबकि असली समाधान हमारे आस-पास की आदतों और वस्तुओं में छिपा होता है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई में सफल हो, तो उसके स्कूल बैग से जुड़ी इन ज्योतिषीय और वास्तुशास्त्रीय बातों का ध्यान जरूर रखें।
हिंदू धर्म में मोर पंख का सबसे प्रसिद्ध संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। श्री कृष्ण के मुकुट में मोर पंख सजे होते थे। इसे उनके सौंदर्य और दिव्यत्व का प्रतीक माना जाता है। कुछ शास्त्रों के अनुसार, मोर पंख भगवान कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि वह मोर के प्रिय हैं और मोरपंख उनके संगीत और नृत्य के प्रतीक के रूप में दिखता है।
महाकुंभ की शुरुआत अगले महीने से होने जा रही है। साधु-संत के अखाड़े प्रयागराज पहुंच चुके हैं। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होने वाला है। अब जब शाही स्नान की बात आ ही गई हैं, तो आपके दिमाग में नागा साधुओं का नाम जरूर आया होगा। भगवान शिव के उपासक और शैव संप्रदाय के ताल्लुक रखने वाले नागा साधु शाही स्नान के कारण चर्चा में रहते हैं।
जनवरी 2025 से कुंभ मेले की शुरुआत संगम नगरी प्रयागराज में होने जा रही है। इस दौरान वहां ऐसे शानदार नजारे देखने को मिलेंगे, जो आम लोग अपनी जिंदगी में बहुत कम ही देखते हैं। अब जब कुंभ की बात हो रही है, तो नागा साधुओं की बात जरूर होगी ही। यह मेले का मुख्य आकर्षण होते है, जो सिर्फ कुंभ मेले के दौरान ही दिखाई देते है।
हिंदुओं के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम महाकुंभ की शुरुआत में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। पहला शाही 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर होने वाला है। इसमें सबसे पहले नागा साधु स्नान करेंगे।