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छिन्नमस्ता जयंती 2025

छिन्नमस्ता जयंती 2025

Chhinnamasta Jayanti 2025: छिन्नमस्ता जयंती की तिथि और महत्व, इससे प्राप्त होती है विशेष शक्तियां 


छिन्नमस्ता जयंती दस महाविद्याओं में से छठी देवी के रूप में प्रतिष्ठित देवी छिन्नमस्ता की जयंती है। इस वर्ष यह रविवार 11 मई को मनाई जाएगी। यह दिन विशेष रूप से तांत्रिक साधकों और शक्ति साधकों के लिए महत्वपूर्ण होता है। आइए जानते हैं इस दिन की पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में। 

छिन्नमस्ता जयंती की तिथि 

छिन्नमस्ता जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है, जो इस वर्ष शनिवार, 10 मई को शाम 5:29 बजे से शुरू होगा और रविवार, 11 मई को रात 8:01 बजे समाप्त होगा। यह सूर्योदय तिथि के अनुसार मनाया जाएगा, जो 11 मई को है।

देवी छिन्नमस्ता को करें लाल पुष्प अर्पित 

  • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगाजल से स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • एक चौकी पर देवी छिन्नमस्ता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • दाहिने हाथ में लाल पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें।
  • देवी को सिंदूर और कुमकुम तिलक लगाएं साथ ही, गुड़हल के फूलों की माला अर्पित करें।
  • फिर फल और मिठाई अर्पित करें।
  • इस दिन विशेष रूप से ‘ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा’ मंत्र का जाप करें।
  • शाम को देवी की आरती करें और फिर फलाहार ग्रहण करें।

देवी छिन्नमस्ता को भोग में अर्पित करें उड़द की दाल 

  • लाल वस्त्र, जो शक्ति और समृद्धि का प्रतीक।
  • नीले फूल और माला, जो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक।
  • सरसों का तेल दीपक जलाने के लिए।
  • उड़द की दाल, फल, मिठाई, सुपारी, पान और दक्षिणा भोग अर्पण के लिए।

छिन्नमस्ता जयंती पर की जाती हैं तंत्र मंत्र की सिद्धियां प्राप्त

देवी छिन्नमस्ता को शक्ति, साहस और बलिदान की प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी ने अपनी सहेलियों की भूख शांत करने के लिए स्वयं का सिर काटा और रक्त की धारा से उनकी भूख मिटाई। इसलिए उन्हें ‘प्रचंड चंडिका’ भी कहा जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। साथ ही, यह पूजा तंत्र-मंत्र से संबंधित सिद्धियां प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करती है।

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बिहार केे प्रसिद्ध दुर्गा शक्ति स्थल

दुर्गा पूजा यानी नवरात्र की शुरुआत होने वाली है. ऐसे में लोगों के सिर पर नवरात्र के पावन पर्व का भक्तिमय रंग और पर्व की उमंग दोनों ही परवान चढ़ने लगे हैं। चारों तरह की नवरात्रि में सचमुच शारदीय नवरात्र ही सबसे भव्य और खास नवरात्र होती है।

देवी धूमावती

माता पार्वती का एक रूप और दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती हैं। माता के इस अवतार को लेकर कई कथाएं हैं जो बड़ी विचित्र हैं।

माता मातंगी

भगवान शिव का एक नाम मतंग भी है। शिव की शक्ति से उत्पन्न दस महाविद्याओं में से एक देवी मातंगी का नाम शिव के मतंग नाम से ही पड़ा है।

मां दुर्गा क्यों करती हैं सिंह की सवारी

मां दुर्गा के सभी रूपों के बारे में जब आप भक्त वत्सल पर पढ़ेंगे तो पाएंगे कि मैया के हर रूप में उनके वाहन अलग-अलग हैं। लेकिन फिर भी मूल रूप में मां आदिशक्ति दुर्गा की सवारी शेर ही है।

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