होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए होलिका दहन किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब नरसिंह अवतार लिया था और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन कई नियमों का पालन किया जाता है, लेकिन कुछ गलतियां करने से व्यक्ति के जीवन में दरिद्रता, आर्थिक संकट और दुर्भाग्य आ सकता है। इसलिए इस दिन कुछ कार्यों से बचना आवश्यक होता है।
होलिका दहन के दिन मांस-मदिरा का सेवन करना अशुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और किसी भी तरह के नशे से दूर रहना चाहिए। इस दिन यदि कोई व्यक्ति शराब पीता है या मांसाहार करता है, तो उसे जीवन में आर्थिक परेशानियों और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, यह परिवार में कलह और नकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, होलिका दहन के दिन किसी से भी धन उधार लेना या देना नहीं चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है और घर में दरिद्रता आ सकती है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन पैसे का लेन-देन करते हैं, उन्हें सालभर आर्थिक संकट झेलना पड़ सकता है। इसलिए कोशिश करें कि इस दिन किसी भी तरह का वित्तीय लेन-देन न किया जाए।
ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं का केवल एक ही पुत्र है, उन्हें होलिका दहन की अग्नि के पास नहीं जाना चाहिए। परंपराओं के अनुसार, एकमात्र पुत्र की माता को इस अनुष्ठान से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह उनके पुत्र के लिए अशुभ हो सकता है। हालांकि, जिनके पास एक पुत्र और एक पुत्री हैं, वे इस नियम से मुक्त माने जाते हैं और वे होलिका दहन कर सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन के दिन सफेद रंग की चीजों का सेवन वर्जित होता है। इस दिन सफेद मिठाई, खीर, दूध, दही या बताशे जैसी चीजें नहीं खानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सफेद चीजें नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं, जिससे दुर्भाग्य बढ़ सकता है।
होलिका दहन के लिए आमतौर पर सूखी लकड़ियां जलाने की परंपरा होती है, लेकिन कुछ विशेष लकड़ियां जलाना अशुभ माना जाता है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, आम, बरगद और पीपल की लकड़ियों को जलाने से बचना चाहिए। इन पेड़ों में फाल्गुन के महीने में नई कोपलें निकलती हैं, और इन्हें जलाने का अर्थ होता है नवनिर्माण को नष्ट करना, जो अशुभ फल दे सकता है।
हिंदू धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। यह वह अवधि होती है जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं और गुरु ग्रह के साथ युति बनाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस अवधि में सूर्य और गुरु दोनों ही प्रभावहीन हो जाते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत जिसे संकट हारा या सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। इसे भगवान गणेश की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
कृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए मासिक जन्माष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत न केवल श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि भी लाता है।
प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ इन दिनों सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। यहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पवित्र स्नान के लिए एकत्रित हुए हैं।