हिंदू धर्म में कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह दिन भगवान काल भैरव की पूजा के रूप में मनाया जाता है। काल भैरव को समय और मृत्यु का नियंत्रक माना जाता है और उनकी पूजा से जीवन के कई समस्याओं का समाधान होता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के भय, संकट और परेशानियां दूर होती हैं। मान्यता है कि भगवान काल भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाते हैं। कालाष्टमी के दिन पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह व्रत विशेष रूप से शनि और राहु के बुरे प्रभाव को कम करने में सहायक माना जाता है। इसके अलावा, कालाष्टमी व्रत से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में भी मदद मिलती है। ऐसे में आइए जानते हैं मई में कब रखा जाएगा कालाष्टमी का व्रत। साथ ही जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व के बारे में।
हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान काल भैरव की पूजा के लिए समर्पित होता है। साल 2025 में कालाष्टमी 20 मई को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, इस दिन अष्टमी तिथि का प्रारंभ सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 21 मई को सुबह 4 बजकर 55 मिनट पर होगा।
इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान काल भैरव की विशेष पूजा करते हैं। पूजा के लिए सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। उसके बाद पूजा स्थल को साफ करके भगवान काल भैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद, उन्हें फूल, फल, मिठाई और अन्य पारंपरिक वस्तुएं अर्पित करें। साथ ही, दीपक जलाएं और काल भैरव की कथा पढ़ें या सुनें। इस दिन भक्त काल भैरव के मंत्रों का जाप भी करते हैं। मंत्र है - 'ॐ काल भैरवाय नमः' या 'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।'
भगवान काल भैरव को विघ्नहर्ता और शत्रुओं का नाश करने वाला माना जाता है। उनकी पूजा करने से मनुष्य के जीवन से सभी प्रकार के भय और संकट दूर होते हैं। मान्यता है कि भगवान काल भैरव अपने भक्तों को काले जादू, नकारात्मक ऊर्जा, और बुरी शक्तियों से बचाते हैं। साथ ही, उनकी आराधना से जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती है। काल भैरव की पूजा करने से आत्मविश्वास, साहस और निर्भीकता में वृद्धि होती है। काल भैरव के बारे में यह भी माना जाता है कि वह शनि और राहु के अशुभ प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं। साथ ही, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उनकी पूजा से ग्रहों के दोष भी दूर होते हैं।
दिपावली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अधिक महत्व है। माता के अष्ट लक्ष्मी स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजन करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।
आदि लक्ष्मी, मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप हैं। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। आदि लक्ष्मी को महालक्ष्मी भी कहा जाता है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं मां लक्ष्मी के कुल आठ स्वरूप हैं। वैसे तो दीपावली पर हम सभी मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं लेकिन मां लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों में से प्रत्यक्ष स्वरूप को प्रसन्न करने हेतु मां लक्ष्मी के इन अष्ट स्वरूपों से संबंधित स्त्रोत का पाठ कर आप मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।
मां लक्ष्मी के आठ स्वरूपों में से आठवां स्वरूप हैं विद्या लक्ष्मी का जो विज्ञान और कला के साथ ज्ञान की देवी हैं। इनकी आराधना करने से इन तीनों चीजों में व्यक्ति वृद्धि और विकास करता है।