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पितृपक्ष 2025 एकादशी श्राद्ध मुहूर्त

पितृपक्ष 2025 एकादशी श्राद्ध मुहूर्त

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष का एकादशी श्राद्ध, इस मुहूर्त में करें तर्पण और श्राद्ध कर्म की विधि

पितृपक्ष में हर दिन का अपना महत्व है और हर तिथि विशेष फल प्रदान करती है। इस बार एकादशी श्राद्ध बुधवार, 17 सितम्बर 2025 को मनाया जाएगा। जिन परिवारजनों की मृत्यु एकादशी तिथि को हुई हो, उनके लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन विधिपूर्वक तर्पण और श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।

पंचांग और मुहूर्त

  • कुतुप मुहूर्त – 11:27 एएम से 12:16 पीएम (49 मिनट)
  • रौहिण मुहूर्त – 12:16 पीएम से 01:05 पीएम (49 मिनट)
  • अपराह्न काल – 01:05 पीएम से 03:32 पीएम (02 घण्टे 27 मिनट)
  • एकादशी तिथि प्रारंभ – 17 सितम्बर 2025 को 12:51 एएम
  • एकादशी तिथि समाप्त – 17 सितम्बर 2025 को 12:09 एएम

श्राद्ध कर्म का श्रेष्ठ समय कुतुप और रौहिण मुहूर्त माना जाता है। अपराह्न काल में भी तर्पण और पिंडदान करना शुभ फलदायी होता है।

एकादशी श्राद्ध का महत्व

एकादशी तिथि का संबंध व्रत और उपवास से भी है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन किया गया श्राद्ध अन्य दिनों की अपेक्षा विशेष फल देता है। जिन पूर्वजों का निधन एकादशी तिथि को हुआ हो, उनके लिए श्राद्ध करने से वे तृप्त होकर परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

एकादशी श्राद्ध को सामान्य भाषा में ग्यारस श्राद्ध भी कहा जाता है। इस दिन पितरों के साथ-साथ भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है, क्योंकि एकादशी व्रत विष्णु पूजा का श्रेष्ठ दिन माना गया है।

श्राद्ध की विधि

एकादशी श्राद्ध की विधि सामान्य श्राद्धों की तरह ही है।

  • प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और संकल्प लें।
  • पितरों का ध्यान करके तिल, कुश, जल और अक्षत से तर्पण करें।
  • जौ, तिल और चावल से पिंडदान करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
  • अंत में पितरों से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है – ‘येन श्राद्धं तु विधिवत्, पितरः सन्तुष्टाः भवन्ति।’ यानी विधिपूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतुष्ट करता है।

क्या करें और क्या न करें

  • इस दिन तामसिक भोजन, मदिरा और मांसाहार से बचें।
  • परिवार में शांति और सौहार्द बनाए रखें।
  • ब्राह्मण, गौ और गरीबों की सेवा अवश्य करें।
  • मन, वचन और कर्म से पवित्र बने रहें।

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