पितृपक्ष में हर दिन का अपना महत्व है और हर तिथि विशेष फल प्रदान करती है। इस बार एकादशी श्राद्ध बुधवार, 17 सितम्बर 2025 को मनाया जाएगा। जिन परिवारजनों की मृत्यु एकादशी तिथि को हुई हो, उनके लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन विधिपूर्वक तर्पण और श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
श्राद्ध कर्म का श्रेष्ठ समय कुतुप और रौहिण मुहूर्त माना जाता है। अपराह्न काल में भी तर्पण और पिंडदान करना शुभ फलदायी होता है।
एकादशी तिथि का संबंध व्रत और उपवास से भी है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन किया गया श्राद्ध अन्य दिनों की अपेक्षा विशेष फल देता है। जिन पूर्वजों का निधन एकादशी तिथि को हुआ हो, उनके लिए श्राद्ध करने से वे तृप्त होकर परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
एकादशी श्राद्ध को सामान्य भाषा में ग्यारस श्राद्ध भी कहा जाता है। इस दिन पितरों के साथ-साथ भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है, क्योंकि एकादशी व्रत विष्णु पूजा का श्रेष्ठ दिन माना गया है।
एकादशी श्राद्ध की विधि सामान्य श्राद्धों की तरह ही है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है – ‘येन श्राद्धं तु विधिवत्, पितरः सन्तुष्टाः भवन्ति।’ यानी विधिपूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतुष्ट करता है।