नवरात्रि के अष्टमी-नवमी तिथि के संधि काल में की जाने वाली संधि पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस पूजा के दौरान 108 दीये जलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। जानें, संधि पूजा की विधि, महत्व और इससे जुड़ी मान्यताएं।
जिस तरह दिन और रात के बीच के समय को संध्याकाल कहा जाता है, उसी प्रकार जब एक तिथि समाप्त होकर दूसरी तिथि प्रारंभ होती है, तो उसे ‘संधि काल’ कहा जाता है। नवरात्रि में जब अष्टमी तिथि समाप्त होने और नवमी तिथि प्रारंभ होने के बीच का समय आता है, तो इसे संधि काल माना जाता है। इस विशेष काल में देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है, जिसे संधि पूजा कहा जाता है।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः।सर्वस्मृताः शुभाम ददासि।।दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
माँ दिल के इतने करीब है तू,
जिधर भी देखूं नज़र तू आए,
माँ दुर्गे आशीष दो माँ दुर्गे आशीष दो
मन मे मेरे वास हो तेरा चरणो संग प्रीत हो ॥
माँ गौरी के लाल गजानन,
आज आओ पधारो मेरे आँगन,
काशी वाले देवघर वाले, भोले डमरू धारी।
खेल तेरे हैं निराले, शिव शंकर त्रिपुरारी।