प्रयागराज, जिसे तीर्थों का राजा कहा जाता है, आस्था और श्रद्धा का एक प्रमुख केंद्र है। यह ऐतिहासिक स्थल त्रेता युग से जुड़ा हुआ है, जब भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान पवित्र गंगा तट पर कदम रखा था। संगम के पास बंधवा घाट पर भगवान राम ने स्नान किया, जिसके बाद इस स्थान को "रामघाट" के नाम से प्रसिद्धि मिली।
यहां भगवान श्रीराम ने ऋषि-मुनियों की कुटिया में विश्राम किया था। आज, उस स्थान पर एक भव्य राम जानकी मंदिर स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस पवित्र मंदिर और संगम स्नान को तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि यहां दर्शन और स्नान करने से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
राम जानकी मंदिर में भगवान राम, माता जानकी, लक्ष्मण, हनुमान, और बालक राम की मनमोहक मूर्तियां स्थापित हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहां प्रतिदिन होने वाली भव्य आरती भक्तों के मन को भक्ति से भर देती है। संगम तट पर आयोजित गंगा आरती का दृश्य भी श्रद्धालुओं के लिए विशेष अनुभव होता है।
रामघाट और राम जानकी मंदिर भगवान राम के वनवास के उस ऐतिहासिक क्षण के प्रतीक हैं, जब उन्होंने गंगा तट पर विश्राम किया था। संगम स्नान के बाद भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं और भगवान से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह स्थल आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है।
जिसने दी है मुझे पहचान,
वो अंजनी का लाला है,
झूलन चलो हिंडोलना, वृषभान नंदनी,
झूलन चलो हिडोलना, वृषभान नंदनी।
कई जन्मों से बुला रही हूँ,
कोई तो रिश्ता जरूर होगा,
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,