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भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर डाला। नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने उसके द्वारा हरण की गई लगभग 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया। इस दिन के बाद उन स्त्रियों को भयमुक्त होकर नया जीवन मिला। नई पहचान पाने के बाद खुद को संवारने की परंपरा की शुरुआत हुई। रूप निखारने के लिए सरसों के तेल की मालिश और उबटन लगाया गया।
दीपावली के महापर्व के एक दिन पहले रूप चौदस का त्योहार मनाया जाता है। एक तरफ जहां दीपावली रोशनी का त्योहार है। वही रूप चौदस रूप सुंदरता का प्रतिनिधित्व करता है। इसे नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली भी कहा जाता है। रूप चतुर्दशी के दिन प्रात:काल से पूर्व अरुणोदय काल में उबटन लगाना चाहिए। शादी के समय होने वाली हल्दी की रस्म में जिस तरह दूल्हा-दुल्हन को उबटन लगाते हैं। इसी तरह रूप चतुर्दशी पर हल्दी चंदन, सुगंधित द्रव्य, गुलाब जल का मिश्रण करके शरीर पर मला जाता है।
माना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन उबटन लगाती हैं और सरसों का तेल शरीर पर लगाती हैं। उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मणी से आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। तो आइए जानते हैं कि आखिर छोटी दिवाली को रूप चौदस क्यों कहा जाता है। इसका महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है।
छोटी दिवाली को रूप चौदस कहने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार, हिरण्यगर्भ नामक एक राजा राजपाट छोड़कर तप में विलीन हो गया। कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से दुखी होकर हिरण्यगर्भ ने नारद मुनि को अपनी कष्ट सुनाई। इसके बाद नारद मुनि ने राजा को कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद श्रीकृष्ण की पूजा करने की सलाह दी। राजा मुनि की सलाह पर श्रीकृष्ण की आराधना कर फिर से रूपवान हो गया। तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाने लगा।
वही एक अन्य किंवदंती के अनुसार, एक बार भौमासुर नाम का एक राक्षस जिसे नरकासुर भी कहा जाता है। उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था। उसने अपनी शक्तियों के कारण कई देवताओं पर भी विजय पा ली थी। क्योंकि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथ ही हो सकती थी इसलिए उसने हजारों कन्याओं का हरण कर लिया था। इस पर इंद्रदेव भगवान कृष्ण के पास संसार की रक्षा की प्रार्थना लेकर पहुंचते हैं। इंद्रदेव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आसीन होकर नरकासुर राक्षस का संहार करने पहुंचे। भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर डाला। नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने उसके द्वारा हरण की गई लगभग 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया। इस दिन के बाद उन स्त्रियों को भयमुक्त होकर नया जीवन मिला। रूप चौदस पर व्रत रखने का भी अपना महत्व है। मान्यता है कि रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करते हैं।
रूप चौदस के दिन ज्यादा साफ-सफाई से स्नान किया जाता है। पहले घर पर उबटन बनाकर उससे नहाया जाता था, लेकिन अब बाजार से रेडीमेडउबटन खरीद कर लाते हैं। इस दिन उबटन से नहाने का महत्व है। पानी में तिल, अपामार्ग, चंदन, इत्र, गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। माना जाता है कि पानी में ये चीजें डालकर स्नान करने से शरीर की सफाई तो होती ही है। साथ ही देवी-देवताओं की कृपा भी मिलती है।
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