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हठयोगी के कितने प्रकार होते हैं

हठयोगी के कितने प्रकार होते हैं

हठयोगी क्यों देते हैं अपने शरीर को कष्ट, जानिए कितने प्रकार के होते हैं हठयोग 


आपने अक्सर साधु-संतों को अजीबोगरीब मुद्राओं में, शरीर को कष्ट देते हुए देखा होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि वे ऐसा क्यों करते हैं? क्या आप जानते हैं कि यह सब हठयोग से जुड़ा हुआ है? हठयोग के कुछ अभ्यासों में शरीर को कष्ट देकर शारीरिक शुद्धि की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शरीर में जमा विषैले पदार्थों को निकालने के लिए कष्ट सहना जरूरी है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि आखिर हठयोगी अपने ही शरीर को कष्ट देकर आत्मिक शांति कैसे प्राप्त करते हैं। 


कौन होते हैं हठयोगी? 


साधु-संत हमेशा किसी भी कठिन परिश्रम या तपस्या को साधना की दृष्टि से करते हैं। उनका लक्ष्य होता है अपनी साधना को सफल बनाना और सिद्धि प्राप्त करना। कई महात्मा पंचधूनी जैसी कठोर तपस्या करते हैं, जो हठयोग का ही एक रूप है। इसी तरह, खड़े-खड़े तपस्या करना, बिना खाए-पीए रहना, ये सभी हठयोग के अंतर्गत आते हैं।


दरअसल, हठयोग का अर्थ है किसी साधना को करने के लिए अपने मन को बलपूर्वक एकाग्र करना। यह एक तरह का आत्म-अनुशासन है, जिसमें साधक अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत बनाता है। हठयोग में शुद्ध और निष्काम भावना का होना बहुत जरूरी है। साधक को अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहना होता है।


हठयोग के माध्यम से साधक अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखता है। यह उसे मानसिक शांति और आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है। हठयोग के विभिन्न प्रकार के आसन, प्राणायाम और ध्यान अभ्यास होते हैं जो शरीर और मन को संतुलित करते हैं।


कितने प्रकार के हठयोग होते हैं?


कई साधु संत, इंद्रियों और मन पर नियंत्रण पाने तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए विभिन्न प्रकार के हठयोग करते हैं। इनमें से कुछ साधनाओं में शारीरिक कष्ट सहन करना भी शामिल हो सकता है। वे अपने मन को एकाग्र करके ईश्वर की प्राप्ति या सिद्धियों को पाने का प्रयास करते हैं। सनातन परंपरा में हठ के चार प्रकार बताए गए हैं: राजहठ, बालहठ, स्त्रीहठ और योगहठ। इनमें योगहठ, साधुओं द्वारा किए जाने वाले योग अभ्यासों को दर्शाता है।


साधु-संत देते हैं अग्नि परीक्षा? 


जेठ का महीना आते ही भारत के कई हिस्सों में साधु-संतों द्वारा अग्नि तपस्या का आयोजन किया जाता है। इस तपस्या में साधु पांच कंडों की धूनी लगाते हैं और उसके बीच बैठकर तप करते हैं। यह तपस्या हर दिन थोड़ी-थोड़ी बढ़ती जाती है, यानी हर दिन पांच-पांच कंडे और जोड़े जाते हैं।

इस हठयोग में साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं और आग के ढेर के बीच बैठ जाते हैं। इस दौरान उनके सिर पर गीला कपड़ा बांधा जाता है ताकि आंख और कान को किसी तरह की क्षति न पहुंचे। यह तपस्या बेहद कठिन होती है, लेकिन साधुओं का मानना है कि इससे शरीर और मन को शक्ति मिलती है।

पंचधूनी की परंपरा बेहद प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भी भगवान शिव को पाने के लिए इसी तरह की तपस्या की थी। उन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था।


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भोले ऐसी भांग पिला दे, जो तन मन में रम जाए (Bhole Aisi Bhang Pila De Jo Tan Man Me Ram Jaye)

शिव समान दाता नहीं,
है ये देवों के है देव,

भोले बाबा का ये दर (Bhole Baba Ka Ye Dar)

भोले बाबा का ये दर,
भक्तों का बन गया है घर,

भोले बाबा की निकली बारात है (Bhole Baba Ki Nikli Baraat Hai)

भोले बाबा का ये दर,
भक्तों का बन गया है घर,

भोले बाबा ने पकड़ा हाथ (Bhole Baba Ne Pakda Hath)

भोले बाबा ने पकड़ा हाथ,
की रहता हर पल मेरे साथ,

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