सनातन धर्म में गुरु ही हमें सही और गलत की समझ देते हैं और अच्छे-बुरे का अंतर सिखाते हैं। गुरुओं की महत्ता हमारी संस्कृति में सदियों से रही है। यहां तक कि गुरु को भगवान से भी ऊँचा दर्जा प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन गुरु और शिष्य के बीच के पवित्र बंधन को दर्शाता है। इस दिन लोग अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। तो आइए, इस लेख में गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गुरु पूर्णिमा भगवान वेदव्यास के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। वेदव्यास को महाभारत, पुराणों, वेदों, उपनिषदों और अनेक अन्य हिंदू ग्रंथों का रचयिता माना जाता है। उन्हें ज्ञान, पवित्रता और आत्मज्ञान का प्रतीक माना जाता है। बता दें कि 2025 में गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई, गुरुवार को मनाई जाएगी।
प्रातः काल स्नान करने के बाद श्रद्धालु स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद अपने गुरु या उनके स्वरूप की पूजा करते हैं। पूजा में जल, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप और मिठाई का उपयोग किया जाता है। श्रद्धालु अपने गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने का भी विधान है।
गुरु पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसी कारण आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र देव और धन की देवी माँ लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने का विधान है। इसलिए, गुरु पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करना और दान-पुण्य करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
है मतवाला मेरा रखवाला,
लाल लंगोटे वाला,
काल के पंजे से माता बचाओ,
जय माँ अष्ट भवानी,
कल कल कल जहाँ निर्मल बहती,
माँ गंगा की धार,
धार्मिक शास्त्रों में वैदिक मंत्र जाप को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी वैदिक मंत्र जाप के कई लाभ हैं।