केतु को आध्यात्मिक विकास, मोक्ष और वैराग्य का कारक माना जाता है। केतु ग्रह व्यक्ति के पिछले जन्मों के कर्मों का फल देते हैं। यह व्यक्ति के जीवन में अचानक बदलाव ला सकता हैं, चाहे वह अच्छे हों या बुरे। केतु को मोक्ष का मार्ग दिखाने वाला भी माना जाता है। यह व्यक्ति को भौतिक सुखों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता हैं। केतु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न तरीकों से पड़ता है। यह व्यक्ति को अचानक धन लाभ या हानि, यात्रा, अलगाव, बीमारी आदि दे सकता है। केतु का प्रभाव व्यक्ति की कुंडली में उसकी स्थिति और अन्य ग्रहों के साथ उसके संबंधों पर निर्भर करता है। यदि केतु किसी व्यक्ति की कुंडली में कमजोर है तो उसके जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए व्यक्ति को केतु ग्रह की पूजा और उपाय करने से लाभ हो सकता है।
गणेश जी को केतु का स्वामी माना जाता है। इसलिए केतु के दोष से मुक्ति पाने के लिए गणेश जी की पूजा करना बहुत ही लाभदायक होता है। तो आइए इस लेख में विस्तार से पूजा विधि और मंत्रों का बारे में जानते हैं।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु दोष है तो उसकी पूजा करने से यह दोष शांत होता है और जीवन में आ रही समस्याएं दूर होती हैं। केतु पूजा व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने में मदद करती है। केतु पूजा करने से मन शांत होता है और व्यक्ति तनाव मुक्त महसूस करता है। केतु पूजा करने से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है और धन लाभ होता है। साथ ही उसकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं और व्यक्ति स्वस्थ रहता है। केतु पूजा करने से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है। केतु पूजा से सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित हैI
परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम की पूजा को समर्पित है। परशुराम द्वादशी विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।
परशुराम द्वादशी का पर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को समर्पित है, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत विशेष रूप से संतान के प्राप्ति की कामना रखने वाले लोगों के लिए फलदायी होता हैं।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। यह व्रत सभी पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।