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वार्षिक श्राद्ध पूजा विधि

वार्षिक श्राद्ध पूजा विधि

Shradh Puja Vidhi:  पितरों को करना चाहते हैं खुश, इस प्रक्रिया से करें श्राद्ध पूजा, जानें विधि 



हिंदू धर्म में श्राद्ध पूजा का विशेष महत्व है। यह पितरों यानी पूर्वजों  के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक प्रमुख अनुष्ठान है। जो सदियों से हिंदू संस्कृति में करा जाता है। श्राद्ध संस्कार में पिंडदान, और ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृ दोष दूर होते हैं और जीवन में बाधाएँ समाप्त होती हैं। यह कर्म सिर्फ पुत्र ही नहीं, बल्कि परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है। अनुष्ठान हमे अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य का अहसास कराता है। इसके अलावा श्राद्ध पूजा करने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है , समृद्धि आती है  और व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है।आम तौर पर वार्षिक श्राद्ध, पितृ पक्ष में या पुण्यतिथि पर किया जाता है, जिससे पूर्वजों की आत्मा संतुष्ट होती है। चलिए आपको श्राद्ध पूजा के बारे में विस्तार से बताते हैं।


श्राद्ध पूजा की प्रक्रिया 


  1. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान  अच्छे वस्त्र पहनें। साथ ही संकल्प लें कि आप अपने पितरों को श्रद्धा भाव से स्मरण कर रहे हैं।
  2. कुशा और तांबे के पात्र में जल लेकर पितरों को अर्पित करें। तांबे के पात्र में तिल, चावल और फूल मिलाए ।
  3. इसके बाद चावल, जौ, तिल और गाय के दूध से बने पिंड पितरों को अर्पित करें। यह प्रक्रिया पितरों को संतुष्ट करने के लिए की जाती है।
  4. पिंड अर्पित करने के बाद विशेष वैदिक मंत्रों के साथ हवन करें, जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले।
  5. श्राद्ध पूजा  में ब्राह्मणों को भोजन कराना अति आवश्यक माना जाता है। इससे पूर्वज तृप्त होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
  6. अंत में श्राद्ध का भोजन गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को अर्पित करे। यह संकेत करता है कि सभी जीवों में पितरों की आत्मा का वास होता है।


श्राद्ध पूजा का  महत्व और लाभ


श्राद्ध शब्द का अर्थ ही श्रद्धा भाव से पूर्वजों का स्मरण करना और आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ करना होता है। ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब तक पितरों को स्मरण कर पूजा पाठ नहीं किया जाता है। तब तक उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। मान्यता है कि यदि पूर्वज संतुष्ट होते हैं, तो वे अपनी संतान को आशीर्वाद देते हैं और उनकी उन्नति में सहायक होते हैं। वहीं यदि पितरों के मान सम्मान में कमी आती है , तो  पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे जीवन में अनेक कठिनाइयां आ सकती हैं।


श्राद्ध पूजा करने का सही समय


श्राद्ध, आमतौर पर, पितृ पक्ष में किया जाता है। इसके अलावा, किसी पूर्वज की पुण्यतिथि पर भी वार्षिक श्राद्ध किया जाता है। अमावस्या, द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा आदि तिथियाँ भी विशेष रूप से श्राद्ध के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

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