राजा बली को महाबलि, इंद्रसेन या मावेली के नाम से भी जाना जाता है, बली एक दैत्य राजा थे लेकिन दैत्यों से जुड़े होने के बाद भी उनका वर्णन एक दयालु और उदार राजा के रूप में किया जाता है जो एक बहुत बड़े दानी होने के साथ भगवान विष्णु के परम भक्त भी रहे। वैदिक काल की कथाओं के अनुसार इस काल में एक ऋषि हुए जिनका नाम कश्यप था। कश्यप की पत्नि दिति थीं। दोनों के दो पुत्र थे जिनके नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे, इनमें अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद के नाम शामिल है। आगे चलकर प्रह्लाद के कुल में ही विरोचन के पुत्र में बलि का जन्म हुआ। राजाबलि को केरल में सबसे महान और समृद्ध शासक के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहते हैं कि राजा बलि के ही सम्मान में ओणम का वार्षिक त्यौहार भी मनाया जाता है। असुरों के राजा बलि महान दानी थे। राजा बलि ने अपने दान के अहंकार में इंद्रलोक पर भी अधिकार करना चाहा, तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि का घमंड तोड़ा। कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान ने राजा बलि से 3 पग धरती मांगी और 2 पग में ही तीनों नाप लिए लेकिन बलि को अपना दान पूरा करना था इसलिए उन्होंने तीसरा पग अपने सिर पर रखने के लिए कहा जिसके बाद ही राजा बलि पाताल चले गए। माना जाता है कि राजा बलि आज भी पाताल लोक में जीवित है, और हर साल ओणम के अवसर पर अपनी प्रजा का हाल जानने आते हैं, केरल और आसपास के हिस्सों में राजा बलि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
हिंदू धर्म में अपना एक कैलेंडर है, जिसके मुताबिक हर 15 दिन में अमावस्या और 15 दिन बाद पूर्णिमा आती है। कुछ ही दिनों बाद 27 फरवरी को फाल्गुन महीने की अमावस्या आने वाली है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला अपने अंतिम दिनों में है। 144 साल में बने संयोग में स्नान करने के लिए रोजाना लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम पहुंच रहे हैं। इस कारण ट्रेन और बसों में भी बड़ी संख्या में भीड़ देखने मिल रही है।
फाल्गुन अमावस्या का दिन पितृों को समर्पित होता है। इस दिन उनका पिंडदान करना चाहिए। इस दिन से जुड़ी कई कथाएं भी है।
महाशिवरात्रि का व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भक्त भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।