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कालीबाड़ी मंदिर, वैशाली

कालीबाड़ी मंदिर, वैशाली

30 साल पहले हुई थी वैशाली के कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना, यहां पूरी होती है हर मनोकामना 


वैशाली काली मंदिर, वैशाली कल्चरल एसोसिएशन द्वारा किए गये दिव्य प्रयासों का परिणाम है। वैशाली सांस्कृतिक एसोसिएशन ने सन् 1994 में वैशाली सेक्टर-5 में दुर्गा पूजा की शुरुआत और आयोजन किया, बाद में इसे वैशाली कालीबाड़ी मंदिर सोसायटी एसोसिएशन के रूप में स्थापित किया गया। प्रत्येक अमावस्या के दिन मंदिर में विभिन्न आयोजन किए जाते हैं। कालीबाड़ी के प्रमुख त्यौहार दुर्गा पूजा, कृष्ण जन्मोत्सव और त्रिकालदर्शी महायोगी बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी का जन्मदिन है।


कौन थे बाबा लोकनाथ? 


बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी का जन्म सन् 1730 में कोलकाता  के समीप चौरासी चकला नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री रामनारायण घोषाल और माता श्रीमती कमलादेवी थी। दोनों ही हृदय से भगवान के सच्चे भक्त थे। 11 साल की कम उम्र में युवा लोकनाथ ने अपने गुरु के साथ घर छोड़ दिया था। उन्होंने कोलकाता में कालीघाट मंदिर का दौरा किया और फिर 25 वर्षों तक जंगलों में ही रहे थे। निस्वार्थ भाव से अपने गुरु की सेवा की और सबसे कठिन हठयोग के साथ-साथ पतंजलि के अष्टांग योग का अभ्यास भी किया। इसके बाद उन्होंने हिमालय की यात्रा की जहां उन्होंने लगभग पांच दशकों तक नग्न अवस्था में ध्यान किया। अंततः, नब्बे वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।

अपने ज्ञानोदय के बाद उन्होंने अफगानिस्तान, फारस, अरब और इजरायल की पैदल यात्रा की और मक्का की तीन तीर्थयात्राएं भी कीं। जब वह ढाका के पास छोटे से शहर बरादी में आए, तो एक अमीर परिवार ने उनके लिए एक छोटा सा आश्रम बनाया। वहां उन्होंने ब्राह्मणों के पवित्र धागे को स्वीकार किया और भगवा वस्त्र धारण किया। अपने शेष जीवन में उन्होंने सभी को दिव्य ज्ञान दिया जो लोग उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास आए थे। 

1 जून, सन् 1890 रविवार सुबह 11:45 बजे, बाबा लोकनाथ जी ध्यान कर रहे थे। फिर वह अपनी आँखें खुली रखते हुए समाधि में चले गए और ध्यान में रहते हुए ही उन्होंने अपना भौतिक शरीर हमेशा के लिए छोड़ दिया। तब उनकी उम्र 160 वर्ष थी। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले एक वादा किया था - "मैं शाश्वत हूं, मैं अमर हूं। इस शरीर के गिरने के बाद यह मत सोचो कि सब कुछ खत्म हो जायेगा। मैं अपने सूक्ष्म सूक्ष्म रूप में सभी प्राणियों के हृदय में निवास करूंगा। जो कोई मेरी शरण में आएगा, उसे सदैव मेरी कृपा प्राप्त होगी।"


मंदिर की विशेषता 


कालीबाड़ी मंदिर में शुरुआत से ही जीव हत्या पर पूर्ण रोक है। बलि प्रथा को पूरा करने के लिए पंडितों द्वारा कोहड़ा ,ईख,और खीरा की बलि दी जाती है। मां काली को भेंट स्वरूप फल और फूल चढ़ाए जाते हैं।


कैसे पहुंचे 


यह मंदिर सेक्टर -04, वैशाली, उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहां पहुंचने का नजदीकी मेट्रो स्टेशन वैशाली मेट्रो स्टेशन है। आप यहां से मंदिर के लिए ई रिक्शा या ऑटो का सहारा ले सकते है। 

समय- सुबह 6:00 बजे से दोपहर  12:00 बजे, शाम 5:00 बजे से रात 9:00 बजे


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छठ पर्व की पूजा विधि

आस्था, शुद्धता और तपस्या का महापर्व छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई इलाकों में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।

मकर संक्रांति की पूजा विधि

मकर संक्रांति की ग्रह स्थिति तब बनती है जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है। इसे सूर्य का मकर संक्रांति में गोचर कहा जाता है। यही समय मकर संक्रांति का प्रमुख क्षण माना जाता है।

पोंगल त्योहार की पूजा विधि

पोंगल दक्षिण भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे खासकर तमिलनाडु में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य देवता की उपासना का प्रतीक है और खासकर कृषि उत्पादकता और समृद्धि से जुड़ा हुआ है।

हरियाली तीज की पूजा विधि

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली हरियाली तीज महिलाओं के लिए अत्यंत पावन और भावनात्मक पर्व होता है।

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