गाजियाबाद का मनन धाम जो शंख वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। यहां का मुख्य आकर्षण और वास्तुकला का अद्भुत नमूना मंदिर के शीर्ष पर मौजूद 31 फुट ऊंचा शंख है जो बड़े-बडे़ वास्तुकारों और इंजीनियरों के लिए हैरत का विषय है। भूमि तल से इसकी कुल ऊंचाई 108 फुट है। शंख के नीचे की संरचना अष्टकोणीय आकार में है। वर्षा के दौरान पानी की बूंदे शंख पर अभिषेक करती प्रतीत होती हैं। गाजियाबाद का श्री मनन धाम मंदिर मेरठ रोड, मोरटा में स्थित है। जो गाजियाबाद के बड़े मंदिरों में से एक है।
शिखर पर इस बड़े शंख के कारण ही इसे शंख वाला मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में सनातन धर्म के सभी देवताओं की मूर्तियां मौजूद है। इसलिए मंदिर में आने पर चारों धाम की यात्रा जैसा अनुभव होता है।
इस मंदिर की आधार शिला पूज्य श्री वैष्णो देवी जी की प्रेरणा और उन्हीं के करकमलों द्वारा 31 जनवरी 1992 को रखी गई थी। 20 जनवरी 2003 को इस मंदिर का उद्घाटन भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति महामहिम श्री भैरों सिंह शेखावत ने इस भव्य शंख के अनावरण के साथ किया था। श्री मनन धाम मंदिर तकरीबन तीन एकड़ जगह में फैला हुआ है।
तभी से इस मंदिर में दर्शन के लिए दिल्ली सहित दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में भगवान शिव के अलावा राधा-कृष्ण, भगवान राम और अन्य देवताओं की पूजा होती है। सावन माह में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
1. भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की ऊचाई 108 फ़ीट है।
2. मंदिर का शंख आकार का शिखर करीब 100 टन से ज्यादा भारी है ।
3. यह तकरीबन 31 फीट ऊंचा है।
4. शंख की संरचना अष्टकोणीय है।
गाजियाबाद का श्री मनन धाम मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। यहां पहुंचने के लिए दिल्ली शहर के हर कोने से बस, मेट्रो व निजी वाहन सेवा उपलब्ध है। मेरठ रोड, मोरटा में मुख्य मार्ग के नजदीक होने के कारण यहां आवागमन के सभी साधन आसानी से मिल जातें हैं। दिल्ली पहुंचने के बाद आप लोकल कन्वेंस के जरिए यहां बहुत कम खर्च में पहुंच सकते हैं।
पंचांग के अनुसार, इस साल मौनी अमावस्या बुधवार, 29 जनवरी 2025 को है। बता दें कि माघ माह की अमावस्या को ही मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है। इसे माघी अमावस्या भी कहा जाता है।
फिलहाल, जोर-शोर से महाकुंभ चल रहा है। इसमें नागा साधु के अलावा विभिन्न प्रकार के साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से यहां साधु-संत पहुंचे हैं।
नागा साधु एक विशेष प्रकार के संन्यासी होते हैं, जो अपनी साधना और तपस्या के लिए कठोर जीवनशैली अपनाते हैं। जबकि वे कुंभ मेले जैसे विशेष अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, सामान्य साधु की तरह वे रोज नहाने पर विश्वास नहीं करते।
संन्यास और वैराग्य, दोनों ही आध्यात्मिक साधना के प्रमुख मार्ग हैं। परंतु, जब भी लोग किसी संन्यासी को देखते हैं तो अक्सर उन्हें वैरागी समझ लिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दोनों ही उच्च आध्यात्मिक साधना और ईश्वर की भक्ति से जुड़े होते हैं।