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भानु सप्तमी कथा

भानु सप्तमी कथा

Bhanu Saptami Katha: भानु सप्तमी के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सभी इच्छा होंगी पूरी


भानु सप्तमी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन सूर्य देव की आराधना करने से व्यक्ति को अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भानु सप्तमी का व्रत करने से न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि यह आत्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस पर्व का महत्व भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब की कथा से भी जुड़ा है, जिन्होंने सूर्य देव की पूजा करके कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी। इसके अलावा इंदुमती की कथा भी भानु सप्तमी के महत्व को दर्शाती है, जिसमें एक वेश्या ने इस व्रत को करके मोक्ष प्राप्त किया था। भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को अपने जीवन में कई लाभ मिल सकते हैं। इस दिन व्रत रखने और सूर्य देव की आराधना करने से व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार पुण्यफल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं भानु सप्तमी की पौराणिक कथा और इसका महत्व। 

भानु सप्तमी 2025 कब है?

वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि कि शुरूआत 3 मई, शनिवार के दिन सुबह 7 बजकर 52 मिनट से होगी। जो  4 मई, रविवार के दिन सुबह 7 बजकर 18 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, भानु सप्तमी 4 मई को मनाई जाएगी।

भानु सप्तमी की कथा 

भानु सप्तमी की दो कथाएं सर्वार्धिक प्रचलित है, जो इस प्रकार है- 

इंदुमती की कथा और महत्व

भानु सप्तमी की एक प्रचलित कथा के अनुसार, इंदुमती नाम की एक वेश्या थी जिसने अपने जीवन में कोई पुण्य कार्य नहीं किया था। वह मोक्ष प्राप्त करना चाहती थी, इसलिए उसने वशिष्ठ ऋषि से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे उसे मोक्ष मिल सके। वशिष्ठ ऋषि ने उसे भानु सप्तमी का महात्म्य बताया और कहा कि इस व्रत को करने से स्त्रियों को सुख, सौभाग्य, सौंदर्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इंदुमती ने वशिष्ठ ऋषि की बात मानकर भानु सप्तमी का व्रत किया और प्राण त्यागने के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। उसे स्वर्ग में अप्सराओं की नायिका बनाया गया। इस कथा से हमें भानु सप्तमी के महत्व का पता चलता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब की कथा और महत्व 

एक समय की बात है, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब अपनी सुंदरता पर बहुत गर्व करते थे। उनकी सुंदरता की चर्चा पूरे जगत में थी, लेकिन इसी गर्व ने उन्हें एक दिन बड़ी मुसीबत में डाल दिया। एक बार शाम्ब ने ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया, जो अपनी तपस्या और शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। ऋषि दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। शाम्ब को यह श्राप बहुत कष्टदायक लगा और वह अपने पिता भगवान श्री कृष्ण के पास गए। भगवान श्री कृष्ण ने शाम्ब को सूर्य देव की आराधना करने का निर्देश दिया। उन्होंने बताया कि सूर्य देव की पूजा करने से शाम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल सकती है। शाम्ब ने भगवान श्री कृष्ण की बात मानकर सूर्य देव की पूजा शुरू की। शाम्ब ने सूर्य देव की आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। सूर्य देव की कृपा से शाम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। इस घटना से शाम्ब को यह समझ में आया कि सच्ची सुंदरता आत्मा की पवित्रता और भगवान की कृपा में है, न कि केवल बाहरी रूप में। इस कथा से हमें सूर्य देव की पूजा का महत्व और उनकी कृपा का पता चलता है। सूर्य देव की आराधना करने से व्यक्ति को अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। साथ ही, यह भी सीखने को मिलता है कि गर्व और अहंकार को त्यागकर भगवान की शरण में जाना ही सच्ची सुंदरता और सुख का मार्ग है।

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