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हे गणपति गजानन, मेरे द्वार तुम पधारो (Hey Ganpati Gajanan Mere Dwar Tum Padharo)

हे गणपति गजानन, मेरे द्वार तुम पधारो (Hey Ganpati Gajanan Mere Dwar Tum Padharo)

हे गणपति गजानन,

मेरे द्वार तुम पधारो,

बिगड़ी मेरी बना के,

मेरा भाग्य तुम सवारों,

हे गणपति गजानंद,

मेरे द्वार तुम पधारो ॥


शुभ लाभ के हो दाता,

तुम भाग्य के विधाता,

मर्जी बिना तुम्हारे,

धन धान्य कुछ ना आता,

नैया फसी भवर में,

इसे पार तुम उतारो,

बिगड़ी मेरी बना के,

मेरा भाग्य तुम सवारों,

हे गणपति गजानंद,

मेरे द्वार तुम पधारो ॥


निर्बल को देते काया,

निर्धन पे करते छाया,

देवों में अग्रणी तुम,

जग तुझमे ही समाया,

दे ज्ञान का तू दर्पण,

मुझको भी तो उबारो,

बिगड़ी मेरी बना के,

मेरा भाग्य तुम सवारों,

हे गणपति गजानंद,

मेरे द्वार तुम पधारो ॥


जानू ना पाठ जप तप,

कैसे तुझे मनाऊं,

तेरी महिमा गा के भगवन,

तुझको तो मैं रिझाऊं,

रिद्धि सिद्धि संग विनायक,

मेरी प्रार्थना स्वीकारो,

बिगड़ी मेरी बना के,

मेरा भाग्य तुम सवारों,

हे गणपति गजानंद,

मेरे द्वार तुम पधारो ॥


हे गणपति गजानन,

मेरे द्वार तुम पधारो,

बिगड़ी मेरी बना के,

मेरा भाग्य तुम सवारों,

हे गणपति गजानंद,

मेरे द्वार तुम पधारो ॥

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इस अखाड़े के पास है हजार करोड़ की संपत्ति?

हिंदू धर्म के 13 अखाड़ों में निरंजनी अखाड़ा प्रमुखता से जाना जाता है । शैव संप्रदाय का यह अखाड़ा साधु संतों की संख्या में दूसरे नंबर पर आता है। इसकी खास बात है कि यहां के 70 फीसदी से ज्यादा संत डिग्रीधारक होते है। कोई डॉक्टर होता है, तो कोई इंजीनियर, तो कोई प्रोफेसर।

ये है हिंदू धर्म का सबसे पहला अखाड़ा?

कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा सांस्कृतिक समागम है। इस समागम की शोभा अखाड़े बढ़ाते है, जो साधु संतों के संगठन होते है। इन्ही में से एक है श्री पंचायती अटल अखाड़ा। शैव संप्रदाय के इस अखाड़े की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं। इसे हिंदू धर्म का पहला अखाड़ा भी कहा जाता है।

जानें अखाड़ों के बारे में सबकुछ ?

कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक समागम है। इसमें लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। मेले का मुख्य आकर्षण साधु संतों के अखाड़े होते है। जिनकी दिव्यता को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

8वीं सदी में बनाए थे 13 अखाड़े

प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। अखाड़ों का आना भी शुरू हो गया है। महर्षि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इनकी स्थापना की थी। यह कुंभ मेले की शान होते है।

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