कब लोगे खबर भोलेनाथ,
बड़ी देर भयी बड़ी देर भयी,
कब लोगे खबर भोले नाथ,
चलते चलते मेरे पग हारे,
कब लोगे खबर भोलेनाथ ॥
आया हूँ में भी द्वार तुम्हारे,
अपनी झोली आज पसारे,
खाली जाऊँ भला मै केसे,
तेरेदर से हे भोलेनाथ,
बड़ी देर भयी बड़ी देर भयी ॥
अंजाना हूँ राह दिखा दो,
अब तो बाबा हाथ बढ़ालो,
मोह माया में भटका मैं प्राणी,
नही पाऊ डगर भोलेनाथ,
बड़ी देर भयी बड़ी देर भयी ॥
भक्तो को जो ठुकरावोगे,
आप बबा पछतावोगे,
खुद तुमको मनाना होगा,
रूठ जाऊँ अगर भोलेनाथ,
बड़ी देर भयी बड़ी देर भयी ॥
कब लोगे खबर भोले नाथ
बड़ी देर भयी बड़ी देर भयी,
कब लोगे खबर भोलेनाथ,
चलते चलते मेरे पग हारे,
कब लोगे खबर भोलेनाथ ॥
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है। उपनयन शब्द का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना"।
बच्चे के जन्म के बाद हिंदू परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक भी है।