सनातन धर्म में रंगों को हमेशा से पवित्र माना गया है। रंगोली, न सिर्फ हमारे घरों को सजाती है बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी हमारे मन को शांत और खुशहाल बनाती है। हिंदू धर्म में रंगोली को सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और दीपावली पर तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। दशहरे से दीपावली तक चलने वाला यह सिलसिला सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बेहतरीन उपचार भी है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में रंगोली या फिर चौक जरूर मनई जाती है। इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही सुख-समृद्धि का भी कारक माना जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि रंगोली बनाने की परंपरा कब से चली आ रही है और इसका महत्व क्या है?
रंगोली बनाने की परंपरा रामायण काल से चली आ रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम जब माता सीता के साथ वनवास से लौटे थे, तब अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में रंगोली बनाई थी। इस आधार पर, रंगोली की परंपरा को रामायण काल से जोड़ा जाता है। रंगोली बनाने से आशय है कि घर में सुख और समृद्धि का आगमन है। अगर आप देवी-देवताओं को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो रोजाना भी रंगोली बना सकते हैं।
दक्षिण भारत में आज भी हर दिन महिलाएं चौक या रंगों से रंगोली बनाती हैं और भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं।
रंगोली को देवी-देवताओं के लिए एक तरह का स्वागत द्वार माना जाता है। माना जाता है कि रंगोली देखकर देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-समृद्धि लाते हैं। रंगोली को शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस घर के मुख्य द्वार पर बनाने से घर की सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इतना ही नहीं, कुछ रंगोलियों को मंत्रों और शुभ चिह्नों से ही बनाई जाती है। ताकि मंत्रों का जाप करने से देवी-देवताओं का घर में आगमन हो और घर में हमेशा बरकत होती रहे।
वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है। पूर्वमुखी घर के मुख्य द्वार पर अंडाकार रंगोली बनाने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। यह रंगोली डिजाइन परिवार के सदस्यों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है।
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जय यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे॥
जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर, आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी और कंचन महल बनाये।
पितु मातु सहायक स्वामी सखा, तुम ही एक नाथ हमारे हो।
जिनके कुछ और आधार नहीं, तिनके तुम ही रखवारे हो।