वैकुंठ एकादशी को सनातन धर्म में बेहद शुभ माना गया है। इसे मुक्कोटी एकादशी, पुत्रदा एकादशी और स्वर्ग वथिल एकादशी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी व्रत करने से वैकुंठ के द्वार खुलते हैं। यह व्रत करने से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और वह वैकुंठ धाम में स्थान पाता है। साथ ही यह व्रत करने वाले लोगों पर भगवान विष्णु की हमेशा कृपा रहती है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर होगी। वहीं, समापन 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार वैकुंठ एकादशी का व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा।
* वैकुंठ एकादशी के दिन स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
* इसके बाद गंगा जल से भगवान का अभिषेक करें।
* इसके बाद तुलसी दल, तिल, फूल, पंचामृत से भगवान नारायण की विधि विधान से पूजा करें।
* पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण न करें, हो सके तो वैकुंठ एकादशी का व्रत निर्जला रखें। लेकिन यदि ऐसा संभव न हो तो शाम को दीपदान करने के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
* अगले दिन जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं, दान दें और इसके बाद पारण करें।
बैकुंठ एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को किया जाता है। ऐसे में पारण करने का शुभ मुहूर्त 11 जनवरी को सुबह 07 बजकर 21 मिनट से लेकर 08 बजकर 21 मिनट तक है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में पारण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाने वाला मत्स्य द्वादशी पर्व इस साल दिसंबर में मनाया जाएगा। यह पर्व मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है ।
सनातन धर्म में एकादशी व्रत को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मार्गशीर्ष माह में मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। इसी दिन गीता जयंती का पर्व भी मनाया जाता है।
मोक्षदा एकादशी सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाती है। इसे मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।
वेदों में सूर्य को न केवल जगत की आत्मा बल्कि ईश्वर का नेत्र भी माना गया है। जीवन, स्वास्थ्य और शक्ति के देवता के रूप में उनकी पूजा की जाती है।