हिंदू धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है। गुरु न केवल ज्ञान का स्रोत होते हैं, बल्कि वे शिष्य के जीवन को दिशा देने वाले मार्गदर्शक भी होते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व इसी गुरु-शिष्य परंपरा की गौरवशाली विरासत का प्रतीक है। यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्हें वेदों का विभाजन करने, महाभारत जैसे महाग्रंथ की रचना करने और पुराणों को संकलित करने का श्रेय दिया जाता है। इसी कारण इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा पर व्यास पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि महर्षि वेदव्यास को ‘आदि गुरु’ की उपाधि प्राप्त है। उन्होंने न केवल वेदों को चार भागों में विभाजित किया बल्कि मानवता को आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा भी दी। उनके ज्ञान और कर्तव्यनिष्ठा को स्मरण करते हुए इस दिन गुरुओं की पूजा की जाती है। यह दिन शिष्यों द्वारा अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा अर्पित करने का सर्वोत्तम अवसर होता है।
यह पर्व अध्यात्मिक साधना का आरंभ करने, गुरु मंत्र प्राप्त करने और जीवन में विनम्रता लाने का प्रतीक माना जाता है। आधुनिक समय में भी यह दिन शिक्षकों, मार्गदर्शकों और मेंटर्स को सम्मानित करने के लिए समर्पित रहता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 में पूर्णिमा तिथि दो दिन तक पड़ रही है, लेकिन उदया तिथि के अनुसार गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मान्य होगा।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 09 जुलाई को रात 3:16 बजे से होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 11 जुलाई 2025 को रात 2:06 बजे होगा।
इस दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। घर के पूजा स्थल में गुरु या व्यासजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करके पुष्प, अक्षत, चंदन और धूप-दीप से पूजन किया जाता है। गुरुदेव को वस्त्र, फल, मिष्ठान्न और दक्षिणा अर्पित की जाती है। यदि कोई जीवित गुरु उपलब्ध हों, तो उनके चरणों में पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया जाता है।
भोले ओ भोले आया दर पे,
मेरे सिर पे,
भोले शंकर मैं तुम्हारा,
लगता नहीं कोई,
भोले शंकर तेरे दर्शन को,
लाखों कावड़ियाँ आए रे,
तेरी दया तेरा साया,
सदा रहता मुझ पर,