छठ पूजा भारतीय सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो सूर्यदेव और छठी माता को समर्पित है। इस पूजा में ठेकुआ एक प्रमुख प्रसाद होता है। जिसे विशेष रूप से मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ियों के साथ बनाया जाता है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और इसका समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाता है। ठेकुआ ना केवल एक मिठाई है बल्कि यह व्रत और पूजा की पवित्रता का भी प्रतीक है। इस प्रसाद को बनाते समय महिलाएं छठ के प्रसिद्ध लोकगीत गाती हैं।
छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य प्रकृति की पूजा और सूर्य देवता की उपासना है। सूर्य को जीवन देने वाली शक्ति माना जाता है और ठेकुआ जैसे प्राकृतिक और शुद्ध पकवान का इस पर्व में विशेष स्थान है। आटे की लोई से सूर्य जैसे दिखने वाले सांचे की मदद से ये पकवान तैयार किया जाता है। जब इसे घी में डाला जाता है तो ये सूर्य की भांति लाल होने लगता है। बता दें कि छठ मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
ठेकुआ केवल छठ पूजा का प्रसाद नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। इस मिठाई के माध्यम से लोग सूर्यदेव और छठी माता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। ठेकुआ बनाने और इसे अर्पित करने की प्रक्रिया में जो पवित्रता और सादगी है वह इसे और भी खास बनाती है। ठेकुआ, गेहूं का आटा, गुड़ और घी से तैयार किया जाता है और यह प्रसाद जीवन के मिठास और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा, इस प्रसाद को बनाने के लिए पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया जाता है जो आधुनिक समय में भी हमें हमारे जड़ों से जुड़े रहने का एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है।
छठ पूजा में ठेकुआ का महत्व केवल एक मिठाई तक सीमित नहीं है। यह प्रसाद पवित्रता और साधना का एक रूप माना जाता है। जब व्रती इस प्रसाद को बनाते हैं तो वे पूरी शुद्धता और समर्पण के साथ इसे तैयार करते हैं। ठेकुआ के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है। इस प्रसाद को तैयार करने में मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है, जो इसे और भी पवित्र बनाता है। आंच देने के लिए आम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है जिससे ठेकुआ में एक विशेष सुगंध और स्वाद आता है।
छठ पूजा के दौरान ठेकुआ बनाने की प्रक्रिया एक सामूहिक और पारिवारिक गतिविधि बन जाती है। व्रती महिलाएं एकत्र होकर इसे तैयार करती हैं और इस दौरान छठ के पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं। यह मिठाई केवल पूजा का प्रसाद नहीं है बल्कि यह परिवार और समाज को जोड़ने का एक माध्यम भी है। यह पर्व लोगों को एकजुट करता है। आज के समय में छठ पूजा की लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी है कि अब दिल्ली, मुंबई और अन्य बड़े शहरों में भी ठेकुआ का प्रसाद देखा जाने लगा है। लोग इसे अपने साथियों और परिवारजनों के लिए खास उपहार के रूप में अपने घरों से लेकर आते हैं।
बताते चलें कि ठेकुआ का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के समय प्रमुख प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। यह व्रतियों की श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है जो 36 घंटे का कठिन उपवास करते हैं।
जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल।
एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई व बहन एक साथ बैठकर भोजन करते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया तो भाई बोला कि बहन आओ भोजन करें।
साँची ज्योतो वाली माता,
तेरी जय जय कार ।
गुड़ी पड़वा हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को घर पर फहराने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं और जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है।