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Shri Sthaneshwar Mahadev Temple, Thanesar, Kurukshetra (स्थानेश्वर महादेव मंदिर, थानेसर, कुरुक्षेत्र)

Shri Sthaneshwar Mahadev Temple, Thanesar, Kurukshetra (स्थानेश्वर महादेव मंदिर, थानेसर, कुरुक्षेत्र)

मंदिर के कुंड के जल से दूर होता है कुष्ठरोग


स्थानेश्वर महादेव मंदिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर के सामने एक छोटा कुंड स्थित है जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी कुछ बूंदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था।


विष्णु और दधीचि का युद्ध इसी जगह हुआ


भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी। शिव महापुराण में भी इस स्थल का वर्णन मिलता है। इसमें लिखा है कि एक समय भगवान विष्णु जी और और दधीचि में युद्ध हुआ जिसमे शिव भक्त दधीचि की भक्ति की विजय हुई एवं विष्णु जी को अपने अहंकार को त्यागना पड़ा। विष्णु जी और ऋषि दधीचि ने जिस क्षेत्र में युद्ध किया। यही स्थान आज स्थानेश्वर के नाम से प्रचलित है। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है शिव का निवास। इसी शहर को सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी का गौरव मिला। 


चारों तरफ पवित्र जल से घिरा हुआ है मंदिर


मंदिर की वास्तुकला एक साधारण डिजाइन है, जिसकी छत गुंबद के आकार की है। मंदिर के अंदर छत पर आज भी प्राचीन कलाकृतियां विद्यमान है। इस मंदिर में भगवान शिव का अति प्राचीन शिवलिंग है। यह मंदिर दो भागों में विभाजित है। बाईं ओर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर है और दांई और भगवान शिव का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान भैरव, हनुमान और राम परिवार और माता दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध आरंभ होने से पूर्व पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की एवं महाभारत का युद्ध विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। मंदिर के चारों ओर पवित्र जल है, जो मंदिर परिसर के भीतर सुरक्षा के लिए बनाई गई सीमाओं के साथ सफेद मंदिर को घेरे हुए है।


इसी भूमि पर लड़ा गया था कुरुक्षेत्र युद्ध


कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र के नाम से जाना जाता है और इसे एक पवित्र स्थान माना जाता है। इस स्थान का महत्व इसलिए है क्योंकि महाभारत का युद्ध इसी भूमि पर लड़ा गया था। यहीं पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। इस स्थान के धार्मिक महत्व के कारण कुरुक्षेत्र ने अपनी सीमा के भीतर मांस की बिक्री, रखने और खाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।


48 कोष की यात्रा पर आते है श्रद्धालु


मान्यता है कि इस मंदिर स्थल पर अनेकों ऋषि-मुनियों ने भी तप किया है। कुरुक्षेत्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि जो तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोष की तीर्थ यात्रा पर आते है, उनकी यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष मेला लगता है। कहते है कि शिवरात्रि के मौके पर जो भक्त यहां जल अभिषेक करता है उसे एक साल की शिव पूजा के बराबर फल प्राप्त होता है।


कैसे पहुंचे मंदिर


हवाई मार्ग - कुरुक्षेत्र का नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग - कुरुक्षेत्र एक रेलवे जंक्शन के जो देश के सभी महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग - हरियाणा रोडवेज और अन्य राज्य निगमों की बसें कुरुक्षेत्र से होकर गुजरती है और इसे दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों से जोड़ती है।


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चंद्रदेव की पूजा किस विधि से करें?

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो पक्ष होते हैं । पहला कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष की अवधि 15 दिन की होती है।

दिसंबर में कब है अनंग त्रयोदशी व्रत

प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा को समर्पित एक पवित्र दिन है। इसे हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

मत्स्य द्वादशी के विशेष उपाय

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