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वैदिक मंत्र सदियों से सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा हैं। ये मंत्र प्राचीन वैदिक साहित्य से उत्पन्न हुए हैं और इनका उल्लेख वेदों, उपनिषदों और अन्य धर्मग्रंथों में भी मिलता है। इन्हें ईश्वर के साथ संवाद और आत्मा की शुद्धि के लिए उपयोग किया जाता है। वैदिक मंत्रों को दिव्य वाणी भी माना गया है और इनका सही उच्चारण और जाप जीवन को सफल और सार्थक बनाने में सहायक सिद्ध होता है। इस प्रकार, वैदिक मंत्रों की महिमा अनंत और उनकी प्रासंगिकता हर युग में दिखाई पड़ती है।
शास्त्रों में कहा गया है "मनः तारयति इति मंत्रः" अर्थात, मंत्र ही वह शक्ति है जो मानव को संकटों से तारने और आत्मा के उत्थान में सहायता प्रदान करती है। मंत्रों को देवताओं के साथ संवाद का सशक्त माध्यम माना गया है। इनमें शब्द और ध्वनि का मेल एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
सभी वैदिक मंत्रों में गायत्री मंत्र को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसे 'महामंत्र' कहा गया है क्योंकि यह प्राचीनतम वेद ऋग्वेद की शुरुआत में उल्लिखित है। यह माना जाता है कि भृगु ऋषि ने इस मंत्र की रचना की थी। गायत्री मंत्र इस प्रकार है "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।" गायत्री मंत्र का जाप आत्मज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए किया जाता है। इसे हर आयु और वर्ग का व्यक्ति जप सकता है।
वैदिक शास्त्रों में मंत्रों को विभिन्न भागों में विभक्त किया गया है। इन्हें मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा गया है।
वैदिक मंत्रों का उल्लेख केवल वेदों में ही नहीं, बल्कि उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है। इतना ही नहीं चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में इन मंत्रों का उल्लेख है। उपनिषद में भी आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मंत्रों के उपयोग का मार्गदर्शन किया गया है। वहीं पुराणों में भी मंत्रों का महत्व यज्ञ, हवन और पूजा में बतलाया गया है।
वैदिक मंत्र केवल पूजा-पाठ का साधन नहीं हैं; वे जीवन के हर क्षेत्र में उपयोगी साबित होते हैं।
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