माता के भक्तों को माता से जुड़ी हर बात पसंद होती है। मैय्या का श्रंगार, मैय्या का भोग, सवारी, ग्रंथ आरती, कथाएं और मान्यताएं सभी कुछ मैय्या के भक्तों को बड़े प्रिय हैं। होना भी चाहिए, मैय्या की महिमा है ही कुछ ऐसी। आपने जब भी मैय्या रानी के बारे में पढ़ा सुना या देखा होगा तो आपको सप्त चक्रों का वर्णन जरूर मिला होगा? क्या आप जानते हैं आखिर क्या हैं ये सप्त चक्र। आपकी इसी दुविधा को दूर करने के लिए भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला के इस लेख में हम आपको उन्हीं सप्त चक्रों के विषय में बताने जा रहे हैं….
मनुष्य के शरीर में कुल मिलाकर 114 मुख्य चक्र हैं। हालांकि शरीर में इससे भी ज्यादा चक्र हैं, लेकिन इन 114 चक्रों को मुख्य चक्र कहा गया हैं। इनमें से भी सात सबसे महत्वपूर्ण है जिनके बारे में हम विस्तार से जानेंगे। आम भाषा में इन्हें नसों नाड़ियों के संगम या मिलने के स्थान कहा जा सकता है। यह शक्ति संचय का स्थान भी है, जो कहने को चक्र है जबकि यह संगम हमेशा त्रिकोण जैसा दिखाई देता है।
मूल रूप से चक्र केवल सात हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। देवी आराधना या अन्य प्रयासों से ऊर्जा को इन चक्रों में जाग्रत करने से मनुष्य अकल्पनीय शक्तियों का स्वामी बन सकता है।
यह पहला चक्र है जिसे मूलाधार कहते हैं। यह गुदा और जननेंद्रिय के बीच होता है। मूलाधार चक्र भोजन और नींद पर विजय दिलाने वाला है। अगर आपने सही तरीके से इसे जागरूक कर लिया तो आप इन चीजों से मुक्त हो सकते हैं। मतलब आपको भूख और नींद से होने वाली परेशानियां कभी नहीं होगी।
स्वाधिष्ठान चक्र दूसरा चक्र है जो जननेंद्रिय के ठीक ऊपर होता है। ऊर्जा के स्वाधिष्ठान में सक्रिय होने पर जीवन में आमोद प्रमोद यानी हंसी मजाक की प्रधानता होगी। ऐसे साधक भौतिक सुखों के साथ जीवन में हर पल आनंद में रहते हैं और उसी के लिए प्रयासरत रहते हैं।
मणिपूरक चक्र नाभि के नीचे होता है। यह तीसरा चक्र है। मणिपूरक आपको कर्मयोगी बनाता है।
अनाहत चक्र हृदय के स्थान में पसलियों के मिलने वाली जगह के ठीक नीचे स्थित है। चौथे चक्र अनाहत में ऊर्जा सक्रिय होने पर आप एक सृजनशील व्यक्ति के रूप में आगे बढ़ेंगे।
इसी तरह से पांचवें चक्र विशुद्धि में ऊर्जा सक्रिय होने पर मनुष्य अति शक्तिशाली और बलवान हो जाता है। विशुद्धि चक्र कंठ के गड्ढे में होता है।
आज्ञा चक्र दोनों भवों (भौंह) के बीच होता है। अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में सक्रिय हो चुकी है तो आप अत्यंत बुद्धिमान और श्रेष्ठ बौद्धिक क्षमता के मालिक हैं। इसका आशय यह है कि आपने इस स्तर पर सिद्धि पा ली है कि आपको बौद्धिक सिद्धि हमेशा शांति देती है।
सहस्रार चक्र तक पहुँचने का आशय ही परम आनंद है। इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने चरम शिखर को भी पार कर लिया है। सहस्रार चक्र को ब्रम्हरंद्र्र भी कहते हैं। यह सिर में सबसे ऊपरी जगह पर होता है। अगर आपने देखा हो तो नवजात बच्चे के सिर में ऊपर एक सबसे कोमल जगह होती है। यह वही स्थान है।
आज सोमवार है ये शिव का दरबार है,
भरा हुआ भंडार है,
आज तो गुरुवार है, सदगुरुजी का वार है।
गुरुभक्ति का पी लो प्याला, पल में बेड़ा पार है ॥
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। यह व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन माताएं अपने पुत्रों की कुशलता और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए निर्जला व्रत करती हैं।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित राधा कुंड, सनातन धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल है। इसका भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी से गहरा संबंध माना जाता है।