भारतीय ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष को एक ऐसा महत्वपूर्ण योग माना गया है, जो जातक के जीवन में अनेक बाधाएं उत्पन्न करता है। कुंडली के नवम भाव में पाप ग्रहों की स्थिति या पंचम भाव में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध और केतु की उपस्थिति पितृ दोष का संकेत देती है। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में ब्राह्मण, सत्पुरुष या कुलगुरु का अपमान किया हो, पितरों को जल अर्पित न किया हो या गोहत्या जैसा पाप किया हो, तो भी पितृ दोष उत्पन्न होता है।
पितृ दोष से पीड़ित जातक के जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं। इनमें शिक्षा और करियर में रुकावट, विवाह में देरी, संतान संबंधित समस्याएं, पारिवारिक कलह, आर्थिक तंगी, मानसिक तनाव, गंभीर बीमारियां और दुर्घटनाएं प्रमुख हैं। कई बार गर्भपात या संतान की असमय मृत्यु भी इसी दोष का परिणाम मानी जाती है। ऐसे जातक प्रायः पूर्वजों के अपमान या उनकी अधूरी इच्छाओं के कारण परेशान रहते हैं।
पितृ दोष की शांति के लिए वैदिक विधि से की गई पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। यह पूजा अमावस्या तिथि या श्राद्ध पक्ष में प्रारंभ की जाती है और आमतौर पर 3 से 5 दिनों तक चलती है। इसमें 5 पुरोहितों द्वारा पितृ गायत्री मंत्र का 1,25,000 बार जाप किया जाता है। पंडित संकल्प लेकर जातक और उसके पूर्वजों का नाम लेकर पूजन करते हैं। इस दौरान नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध जैसे कर्म भी किए जाते हैं।
पूजा के दौरान जातक को सफेद कपड़े पहनने चाहिए और सात्विक भोजन करना चाहिए। प्याज, लहसुन, मांस व शराब आदि का पूर्णतः परहेज रखा जाता है। महिलाओं के लिए सफेद साड़ी और पुरूषों के लिए सफेद धोती अनिवार्य होती है। अंतिम दिन ब्राह्मणों, गायों और जरूरतमंदों को भोजन व दान देना आवश्यक होता है।
“ॐ श्रीं सर्व पितृ दोषो निवारणाय कालेशं हं सुख शांतिं देहि चरण स्वाहा”
इस मंत्र का नियमित जाप करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और जातक के जीवन में सुख-शांति लौटती है। एक दिन में 16 माला या 4 दिन तक 4 माला जाप कर सकते हैं। श्राद्ध के दिनों में प्रतिदिन 1 माला जाप भी लाभकारी होता है।
लाभ
पितृ दोष निवारण के पश्चात जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है। विवाह, संतान, करियर और स्वास्थ्य संबंधी रुकावटें दूर होती हैं। मानसिक और आर्थिक समस्याओं में राहत मिलती है, और परिवार में शांति का वातावरण बनता है।
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