खाटू वाले श्याम प्यारे,
खूब कियो श्रृंगार,
रूप तेरो मन भावे,
मोरछड़ी तेरे हाथ में साजे,
लीले के असवार,
रूप तेरो मन भावे ॥
रंग सुनहरी केसरी बागा,
सुन्दर छवि प्यारी है,
अहिलावती के लाल जगत में,
तेरी शान निराली है,
जो कोई आवे गले लगावे,
देता सबको प्यार,
रूप तेरो मन भावे,
मोरछड़ी तेरे हाथ में साजे,
लीले के असवार,
रूप तेरो मन भावे ॥
जिसने दिल से याद किया प्रभु,
तू उसका ग़मख़ार बना,
हारे को तू देता सहारा,
तू यारो का यार बना,
रूप सलोना भोला मुखड़ा,
सबसे बड़ा दिलदार,
रूप तेरो मन भावे,
मोरछड़ी तेरे हाथ में साजे,
लीले के असवार,
रूप तेरो मन भावे ॥
धन्ना भगत का यार बना तू,
खेत में उसके काम किया,
नरसी भगत की हुंडी तारी,
सेठ सांवलिया नाम लिया,
ओ भगतों के प्यारे तुझको,
‘भोला’ रहा पुकार,
रूप तेरो मन भावे
मोरछड़ी तेरे हाथ में साजे,
लीले के असवार,
रूप तेरो मन भावे ॥
खाटू वाले श्याम प्यारे,
खूब कियो श्रृंगार,
रूप तेरो मन भावे,
मोरछड़ी तेरे हाथ में साजे,
लीले के असवार,
रूप तेरो मन भावे ॥
दिवाली से ठीक एक दिन पहले यानी 30 अक्टूबर को छोटी दिवाली मनाई जाएगी। जिसे नरक चतुर्दशी, यम दिवाली, काली चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
छोटी दिवाली के दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण, मां काली और यमराज की पूजा करने का विधान है। इस दिन संध्या के समय यमराज को दीप अर्पित किया जाता है।
दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। हालांकि दिवाली की रोशनी से एक दिन पहले हमें अच्छाई और सच्चाई की ओर ले जाने वाला त्योहार आता है, जिसमें हम छोटी दिवाली के रूप में मनाते हैं।
छोटी दिवाली के दिन मुख्य रूप से 5 दीये जलाने का प्रचलन है। इनमें से एक दीया घर के ऊंचे स्थान पर, दूसरा रसोई में, तीसरा पीने का पानी रखने की जगह पर, चौथा पीपल के पेड़ के तने और पांचवा घर के मुख्य द्वार पर जलाना सबसे उचित माना गया है।