राम जी से पूछे जनकपुर की नारी,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
तोहरा से पुछु मैं ओ धनुषधारी,
एक भाई गोर काहे एक काहे कारी,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
इ बूढ़ा बाबा के पक्कल पक्कल दाढ़ी,
देखन में पातर खाये भर थारी,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
राजा दशरथ जी कइलन होशियारी,
एकता मरद पर तीन तीन जो नारी,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
कहथिन सनेह लता मन में बिचारिन,
हम सब लगैछी पाहून सर्वो खुशहाली,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
राम जी से पूछे जनकपुर की नारी,
बता दा बबुआ लोगवा देत कहे गारी,
बता दा बबुआ ॥
हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थायनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का देश है। हमारी उत्सवप्रियता और उत्सव धर्मिता के सबसे श्रेष्ठतम उदाहरणों में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है।
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी एकादशी को भगवान नारायण विष्णु योग मुद्रा यानी शयन मुद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं।
देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं।