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शिवजी से दिल लगा ले (Shivji Se Dil Lagale)

शिवजी से दिल लगा ले (Shivji Se Dil Lagale)

शिवजी से दिल लगा ले,

शिव जी है भोले भाले,

कर देंगे पार बेड़ा,

किस्मत के खोले ताले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

शिवजी से दिल लगा लें हो ॥


इस जग में इस जहां में,

शिव जी की बरसे माया,

इस जग में इस जहां में,

शिव जी की बरसे माया,

दुख ना उसे सताए,

दुख ना उसे सताए,

महिमा जो तेरी गाले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

किस्मत के खोले ताले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

शिवजी से दिल लगा लें हो ॥


जीवन सफल बना ले,

भज ले तू नाम शिव का,

जीवन सफल बना ले,

भज ले तू नाम शिव का,

बस चार दिन है जीना,

बस चार दिन है जीना,

मन में तू शिव रमा ले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

किस्मत के खोले ताले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

शिवजी से दिल लगा लें हो ॥


कण कण में भोले बाबा,

दिखता है नाम तेरा,

कण कण में भोले बाबा,

दिखता है नाम तेरा,

भोले के दर पर आजा,

भोले के दर पर आजा,

शिवजी को तू मना ले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

किस्मत के खोले ताले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

शिवजी से दिल लगा लें हो ॥


शिवजी से दिल लगा ले,

शिव जी है भोले भाले,

कर देंगे पार बेड़ा,

किस्मत के खोले ताले,

किस्मत के खोले ताले,

मेरे बाबा डमरू वाले,

शिवजी से दिल लगा लें हो ॥

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होलिका दहन शुभ समय और भद्रा का साया

होली फेस्टिवल होलिका दहन के एक दिन बाद मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष अर्थ है। बता दें कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और कई लोग होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जानते है।

घर पर होलिका दहन की विधि

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, होलिका दहन करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। होलिका दहन के विधिवत आराधना करने से नकारात्मकता भी घर से बाहर चल जाता है। इसके साथ ही माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद बना रहता है।

ब्रज होली की पौराणिक कथा

होली का नाम सुनते ही हमारे मन में रंगों की खुशबू, उत्साह और व्यंजनों की खुशबू बस जाती है। यह भारत के सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। हालांकि, होली से जुड़ी कई किंवदंतियां हैं।

श्रीराम और होली की कथा

होली का त्योहार सिर्फ द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसका संबंध त्रेतायुग और भगवान श्रीराम से भी गहरा है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में भी होली मनाई जाती थी, लेकिन तब इसका रूप आज से थोड़ा अलग था। ये सिर्फ रंगों का खेल नहीं था, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ा हुआ एक अनोखा त्योहार था।

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