महाशिवरात्रि, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर, प्रत्येक हिंदू घर में उत्साह और श्रद्धा का वातावरण होता है। शिव भक्त इस दिन विशेष रूप से व्रत रखते हैं और चारों पहर में भगवान शिव की आराधना करते हैं। शिवलिंग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिसमें जल, बेलपत्र, और अन्य प्रिय वस्तुएं अर्पित की जाती हैं।
भगवान शिव का प्रसाद बेहद खास होता है, जिसमें ऐसी वस्तुएं शामिल होती हैं जो लोगों द्वारा ग्रहण नहीं की जातीं, लेकिन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। शिव पूजा की विधि नियमानुसार होना चाहिए और प्रत्येक वस्तु को अर्पित करने के अपने विशेष नियम हैं। बेलपत्र चढ़ाने के भी विशेष नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है।
वहीं इस साल महाशिवरात्रि का महापर्व 26 फरवरी को मनाया जाएगा। यदि आप भी भगवान शिव को उनकी प्रिय वस्तुओं और बेलपत्र से प्रसन्न करना चाहते हैं, तो यह आवश्यक है कि आप सही नियमों का पालन करें। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से भोलेबाबा को बेलपत्र चढ़ाने के नियम के बारे में जानते हैं।
बेलपत्र को सोमवार, अमावस्या, पूर्णिमा और संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए, और शाम के समय भी बेलपत्र तोड़ने से बचें।
यदि महाशिवरात्रि पर बेलपत्र चढ़ाना हो, तो एक दिन पहले बेलपत्र तोड़कर पानी में डालकर रख लें और फिर अगले दिन पूजा में उनका उपयोग करें।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आज 29 जून को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ रविवार का दिन है। इसके साथ ही आज आर्द्रा नक्षत्र के साथ वज्र और सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है।
हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष स्थान है, और वर्ष में दो बार पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि भी साधकों और तांत्रिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा आषाढ़ और माघ मास की गुप्त नवरात्रियां विशेष रूप से साधना, तांत्रिक क्रियाओं और मां दुर्गा के दस महाविद्याओं की उपासना के लिए जानी जाती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आज 29 जून को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ रविवार का दिन है। इसके साथ ही आज आर्द्रा नक्षत्र के साथ वज्र और सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है।
हिंदू धर्म में गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है, खासकर उन साधकों के लिए जो तंत्र, मंत्र और साधना के मार्ग पर चलते हैं। वर्ष में दो बार आने वाली गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ और माघ माह में मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ समय मानी जाती है।